पत्रिका : इंगित, अंक : वार्षिकांक वर्ष 2011, स्वरूप : वार्षिकांक, संपादक : साहित्यकारों का संपादक मंडल, पृष्ठ : 180, मूल्य : उपलब्ध नहीं, ई मेल : , वेबसाईट : उपलब्ध नहीं, फोन/मो. , सम्पर्क : म.भा. हिंदी साहित्य सभा ग्वालियर म.प्र.
इस पत्रिका में बाल साहित्य पर विशेष सामग्री का प्रकाशन किया गया है। अंक में वर्तमान में लिखे जा रहे बाल साहित्य को लेकर गंभीर विमर्श है। कुछ लेखों में प्राचीन भारतीय बाल साहित्य पर उत्कृष्ट सामग्री है। विश्लेषण व वर्णन युक्त इन लेखों में बाल साहित्य की गुणवत्ता, नवीनता तथा स्तरीय ता पर भी विचार किया गया है। श्रीधर पराड़कर, दयाशंकर विजयवर्गीय, जगदीश तोमर, बद्री प्रसाद पंचौली, ओमप्रकाश सारस्वत, मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, कन्हैया सिंह, देवेन्द्र दीपक, कृष्ण मुरारी शर्मा के लेखों में बाल साहित्य व इसकी विरासत पर विचार किया गया है। परशुराम विरही, कृष्ण चंद्र गोस्वामी, शिवकुमार पाण्डेय, गार्गीशंकर मिश्र मराल, मीनाक्षी गोस्वामी, रीता सिंह, जूही समर्पिता, प्रमिला मजेजी, महाश्वेता देवी, विजय कुमार महांति, दिवाकर शर्मा, लखनलाल खरे तथा कामिनी ने बाल साहित्य की दशा व दिशा तथा उसके पे्ररक तत्व , भविष्य निर्माण जैसे विषयों को उठाया है। मुरारीलाल गुप्त, पद्मा शर्मा, अवधेश चंसोलिया, अन्नपूर्णा भदोरिया, उर्मिला सिंह तोमर, राजरानी शर्मा, उर्मि कृष्ण, किशोर काबरा, शीला डोगरे, नागेश पाण्डेय, ऊषा यादव, राजकिशोर सिंह, विवेक गोविंद सुरंगे ने बाल कविताओं, नाटक, कला, मूल्य बोध तथा बालमन जैसे विषयों का विश्लेषण किया है। शरद नारायण खरे, नीलम खरे, मंजरी गोस्वामी, विकास दवे, अखिलेश शुक्ल, कुलभूषण लाल माखिजा, राजकिशोर वाजपेयी, एवं वंदना कुशवाहा के लेखों में बाल साहित्य की इंटरनेट पर सुलभता, क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं में बाल साहित्य एवं बाल गीतों पर उच्च कोटि का लेखन किया गया है। मीना श्रीवास्तव, मंजुलता आर्य, जगदीा गुप्त, विष्णु कुमार अग्रवाल, कैलाश प्रसाद प्रजापति, नमिता त्रिपाठी, दिलीप मिश्रा, अमिता सिंह, पुष्पेन्द्र सिंह चौहान, कुसुम भदौरिया, अलका मौर्य, कल्पना शर्मा तथा मंदाकिनी शर्मा के लेखों में बाल मन की कहानियों, साहित्य का बाल व्यक्तिव विकास में योगदान, चरित्र निर्माण में बाल साहित्य की उपयोगिता तथा बाल मनोविज्ञान जैसे विषयों पर विचार किया गया है। पत्रिका की सभी रचनाएं बाल साहित्य व बालमन से जुड़ी बातों को विस्तृत रूप से सामने लाने में सफल रही है। विद्वान लेखकों ने बाल साहित्य व उसके स्वरूप को लेकर भी काफी कुछ लिखा है। वर्तमान में बाल साहित्य की दशा व दिशा का प्रतिनिधत्व पत्रिका इंगित बहुत अच्छे ढंग से कर सकी है। (मेरे द्वारा लिखी गई यह समीक्षा जनसंदेश में प्रकाशित हो चुकी है।)
आदरणीय महोदय,
ردحذفनमस्कार!
अगर संभ्व हो तो यह बाल साहित्य विशेषांक मगाँने का पूरा पता एवं फ़ोन नं. भेज दीजिए। हमारे यहाँ एक शोधार्थी को इसकी ज़रूरत है। मेरा ईमेल पता अग्रलिखित है-
times81@yahoo.com.
धन्यवाद।
अगर संभव हो तो कॄपया इस पत्रिका का पता एवं फ़ोन नं. ज़रूर भेजें।
ردحذفसाभार।
badhiya jaankaari..
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