
संवाद पत्रिका के इस अंक में उपयोगी व संदर्भ परक जानकारी का प्रकाशन किया गया है। अंक में वरिष्ठ गीताकार विनोद तिवारी पर पत्रिका के संपादक राजुरकर राज ने अच्छा जानकारीपरक आलेख लिखा है। रवीन्द्र भारती का संस्मरण बड़ी रिजनहार थीं मोकी रानी प्रभावित करता है। डॉ. पे्रमजनमेजय का आलेख कितने विज्ञापन दिलवाएंगे आप? विचारयोग्य रचना है। शाहरोज आफरीदी का आलेख ॔भारत भवन को चाहिए डायनामिक सीईओ’ भारत भवन के स्वर्णिम दिनों को लौटाने की वकालत करता है। आलोक आनंद का लेख ॔सांसदों के माड़साहब’ प्रो. विश्वनाथ मिश्रा के योगदान पर विचार करता है। इसके अतिरिक्त वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी व ख्यात साहित्यकार पंकज राग की भोपाल वापसी, सिनेमा में काशी का अस्सी(सुनील मिश्र) एवं स्क्रीन पर दिखेगी दादा की पत्रकारिता(सर्जना चतुर्वेदी) उल्लेखनीय हैं। पत्रिका की अन्य जानकारियां, समाचार तथा पत्र, सूचना आदि भी रचनाकर्मियों के लिए उपयोगी हैं।
बहुत बढ़िया!
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