
कथाप्रधान त्रैमासिकी कथाबिंब के समीक्षित अंक मंे अच्छी व पठनीय कहानियों का प्रकाशन किया गय हैै। इनमें प्रमुख हैं - फंदा क्यो?(डाॅ. सुधा ओम ढीगरा), पिताजी चिंता न करे(चंद्रमोहन प्रधान), चूल्हे की रोटी(सुरेन्द्र अंचल), सइयां निकस गए(डाॅ. वासुदेव) एवं सरहद के पार(डाॅ. संदीप अवस्थी)। पत्रिका की सबसे अच्छी रचना डाॅ. सुधा ओम ढीगरा की कहानी ‘फंदा क्यो?’ है। कहानी का कथानक बहुत ही मार्मिक है व पाठक को मन की गहराइयों तक आंदोलित करता है। दिनेश पाठक शशि, जसविंदर शर्मा, विकास रोहिल्ला, की लघुकथाएं उल्लेखनीय हैं। डाॅ. भावना शेखर, राही शंकर व उमाश्री की कविताएं आज के संदर्भो से भलीभांति जुड़ी हुई प्रतीत होती है। अन्य कविताएं, ग़ज़लें आदि केवल खानापूर्ति लगती है। ख्यात व्यंग्यकार एवं व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय से सुश्री मधुप्रकाश की बातचीत अच्छी व समसामयिक होने के साथ साथ आज के साहित्यिक वातावरण की गहन पड़ताल करती है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ, रचनाएं आदि भी पढ़ने योग्य हैं।
bahdhiya jaankari !
ردحذفयहाँ तो बहुत काम की जानकारी है। धन्यवाद।
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