पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: अक्टूबर 2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 56, मूल्य:5 रू.(वार्षिक 50 रू.), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. (000)00000, सम्पर्क: हि.प्र. प्रिटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला 5
शासकीय पत्रिकाओं में सबसे अलग किस्म की पत्रिका हिमप्रस्थ के समीक्षित अंक में समाज से जुड़े हुए विषयों पर आलेखों का प्रकाशन किया गया है। अंक में फारसी के दरबारी माहौल में खुसरों की हिंदवी कविता(कृपाशंकर सिंह), बदलते दौर में साहित्य के सरोकार(कृष्ण कुमार यादव), हिंदी पत्रकारिताःचुनौतियां एवं जन अपेक्षाएं(सुरेश उजाला), धरती धन न अपना में पंजाबी दलित वर्ग की स्थिति(पूजा कपूर) एवं नारी चेतना का सृजन(ललिता चैहान) विशेष रूप से ध्यान देने योग्य आलेख हैं। प्रदीप कंवर का यात्रा वर्णन कुछ अधिक गंभीर हो गया है जिससे उसकी सरसता प्रभावित हुई है। राजीव गुप्त एवं कालीचरण प्रेमी की लघुकथाएं ठीक ठाक कही जा सकती है। कहानियों में शहतूत पक गए हैं(संतोष श्रीवास्तव) अच्छी व लम्बे समय तक याद रखी जाने वाली कहानी है। सुरभि तथा निधि भारद्वाज की कहानी भी अच्छी है लेकिन कहीं कहीं इन कथाओं में कथातत्व विलोपित सा हो गया है। देवांशु पाल, यशोदा प्रसाद सेमल्टी, एल.आर. शर्मा तथा जया गोस्वामी की कविताएं समयानुकूल हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं भी अच्छी व पठनीय हैं।
Nice to see that Govt. sponsored magazine like 'HIMPRASTHA' is doing so good for hindi literature. Congratulations.
ردحذف'Hasrat' Narevli.
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