पत्रिका: पाखी, अंक: मई2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: अपूर्व जोशी, पृष्ठ: 96, मूल्य:20रू. (वार्षिक 240रू.), ई मेल: pakhi@pakhi.in , वेबसाईट: http://www.pakhi.in/ , फोन/मो. (0120)4070300, सम्पर्क: इंडिपेडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी, बी-107, सेक्टर 63, नोयड़ा उ.प्र.
पत्रिका पाखी का यह अंक हिंदी के ख्यात आलोचक-वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. नामवर सिंह जी पर एकाग्र है। इसके पूर्व भी उन पर तीन चार अंक प्रकाशित हो चुके हैं। डाॅ. नामवर सिंह जी पर अंक निकालना अत्यधिक साहस व जोखिम का कार्य है। इसलिए प्रायः अन्य साहित्यिक पत्रिकाएं भले ही किसी विधा विशेष या अन्य रचनाकार पर अंक निकाल लें पर डाॅ. नामवर सिंह जी पर उन्हें प्रायः कठिनाइयों का सामना ही करना पड़ता है। समीक्षित अंक में उन पर स्थापित तथा स्थापित होने की दिशा में अग्रसर लेखकों द्वारा लेख लिखे गए हैं। सुरेश शर्मा द्वारा लिखे गए उनके जीवन परिचय में वर्ष दर वर्ष उनकी साहित्यिक यात्रा को पाठक तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। आकलन के अंतर्गत विश्वनाथ त्रिपाठी, प्रो. निर्मला जैन, खगेन्द्र ठाकुर, कमला प्रसाद, रघुवीर चैधरी, नंद किशोर नवल, ए. अरविंदातन, राजेन्द्र कुमार, विमल कुमार, कमेन्द्रु शिशिर एवं राजीव रंजन गिरि के लेख हैं। प्रायः सभी लेखों से यह झलकता है कि जो लेखक उनके करीब हैं, उन्होंने और करीब आने का प्रयास किया है। कुछ लेखकों ने उनके आभामण्डल में आने की जुगाड़ भी इस बहाने की है। स्तंभ ‘पुस्तक के बहाने’ में उनकी कुछ कृतियों पर आलेख लिखे गए हैं। इन्हें भगवान सिंह, पुरूषोत्तम अग्रवाल, प्रो. रामवक्ष, सुधीर रंजन सिंह, राकेश बिहारी, वैभव सिंह एवं वैकटेश कुमार ने लिखा है। कुछ लेख पुस्तकों की समीक्षा जैसे लगते हैं तो वहीं कुछ में लेखक भी स्वयं अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर रचना का विशेषज्ञ बनने की घोषणा करता दिखाई देता है। इस वजह से इन लेखों की सरसता प्रभावित हुई है। हालांकि आलोचनात्मक लेखों में सरसता की अपेक्षा प्रायः नहीं की जाती है। लेकिन आम पाठक के लिए भी कुछ न कुछ स्पेस होना ही चाहिए। उनके शिष्यों भगवान सिंह व तरूण कुमार ने लेखों में अपने व्यक्तिगत संबंध व अनुभवों को ही अधिक विस्तार दिया है। डाॅ. परमानंद श्रीवास्तव का लेख तथा परिचर्चा ‘हमारे समय में नामवर’ पत्रिका की उपलब्धि कही जा सकती है। संस्मरण खण्ड के अंतर्गत राजेन्द्र यादव, गुरूदयाल सिंह, काशीनाथ सिंह, भारत भारद्वाज एवं आलोक गुप्ता सहित अन्य लेखकों ने उनकी अपेक्षा उनसे अपने निजी संबंधों का खुलासा ही अधिक किया है। बकलम खुद के अंतर्गत ‘जीवन क्या जिया’ व ‘रचना और आलोचना के पथ पर’ उनके ऐसे लेख हैं जो साहित्यप्रेमी वर्षो याद रखेंगे। महावीर अग्रवाल, की डायरी में वाया नामवर सिंह जी साहित्य के संबंध मंे संग्रह योग्य जानकारी मिलती है। श्री नामवर सिंह जी की कलम से के अंतर्गत उनके कुछ लेखों का पुुनः प्रकाशन पत्रिका को अधिक व्यापक बनाने की दिशा में किया गया एक अच्छा प्रयास है। ख्यात कथाकार, हंस के संपादक राजेन्द्र यादव व आलोचक समीक्षक विजेन्द्र नारायण सिंह के लेख प्रकाशित कर संपादक ने अच्छी साहसिकता का परिचय दिया है। इस तरह के कुछ गिने चुने लेख ही पत्रिका को अभिनंदन गं्रथ की संज्ञा प्रदान करने से मुक्त करते हैं। अच्छा होता कि यदि पाखी इस आयोजन से दो तीन माह पूर्व पाठकों को भी इसमें शामिल कर उनके विचार भी प्रकाशित करती। प्रश्न प्रकाशित कर उनके उत्तर मंगवाकर पाठकांे को भी सीधे तौर पर इस आयोजन में शामिल करने पर पत्रिका संग्रह योग्य व शोधार्थियों के लिए उपयोगी हो जाती। लेकिन फिर भी पहल, पूर्वग्रह व वसुधा के आयोजन के पश्चात यह प्रयास वैश्विक स्तर पर माक्र्सवाद के अवसान की बेला में स्वागत योग्य है। सफलता के पैमाने पर पत्रिका को दस में से छः अंक दिए जा सकते हैं। इसलिए पत्रिका के संपादक व उनकी टीम बधाई की पात्र है।

4 टिप्पणियाँ

  1. पाखी के नामवार जी पर निकाले अंक पर पाखी टीम को बधाई। समीक्षा में जो सीधी बात शुक्‍ला जी कहते नजर आ रहे हैं, उसकी भी बधाई
    अमित शर्मा
    www.patrkar.com
    9829014088

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  2. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह जी पर प्रकाशित अंक पर पूरी पाखी टीम को
    हार्दिक बधाई .आशा है की भविष्य में इसी तरह अन्य साहित्यकारो पर भी
    महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी .

    डा.प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
    विभागाध्यक्ष हिन्दी
    चोइथराम कालेज आफ प्रोफेशनल
    स्टडीज धार रोड इंदौर [म.प्र ] भारत
    फोन - o९४२४८८५१७८९

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