
कर्नाटक में हिंदी के प्रति आम जन में रूची जाग्रत कर रही यह पत्रिका अब हिंदी साहित्य जगत की एक अग्रगामी पत्रिका बन गई है। इसका त्रुटिविहीन व साफ सुथरा मुद्रण आकर्षित करता है। समीक्षित अंक में आलेख - हिंदी राष्ट्र की भाषासेतु है(प्रभुलाल चैधरी), राष्ट्रभाषा का स्वाधीनता से संबंध(मित्रेश कुमार गुप्त), शताब्दी के आइने में हिंद स्वराज(गणेश गुप्त), भारत और वैश्विक सांस्कृतिक समीकरण(डाॅ. अमर सिंह वधान), महान हिंदी सेवीःभारतेन्द्रु हरीशचंद्र(विनोद कुमार पाण्डेय) तथा साहित्यकार स्मृतिशेष कैसे बनते हैं?(प्रो. बी.वै. ललिताम्बा) पठनीय व शोध छात्रों के लिए उपयोगी हैं। जसविंदर शर्मा की कहानी, बी. गोविंद शैनाय की लघुकथाओं में ताजगी है। श्याम गुप्त एवं लालता प्रसाद मिश्र की कविताओं को अच्छी कविताओं मंे शामिल किया जा सकता है।
्धन्यवाद जी, मैने आज वहां जा कर लिंक देखा, माफ़ी चाहुंगा उस दिन देख नही पाया
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें