
यह जानकर अत्यधिक आत्मिक शांति मिलती है कि केरल से भी हिंदी साहित्य की कोई पत्रिका निकलती है। चंद्रशेखर नायर द्वारा संपादित पत्रिका के इस अंक में के.बी. पाजी द्वारा लिखित मार्मिक आलेख मधुर संकल्पों को पीछे छोड़कर प्रकाशित किया गया है। यह आलेख पत्रिका के आजीवन सदस्य शरतचंद्र पर एकाग्र है। पुष्पेन्द्र दुबे का आलेख पंत और बिनोबा के विचारों का तुलनात्मक आकलन अत्यधिक विचारवान लेख है। बद्रीनारायण तिवारी ने आचार्य रामानुज संक्षिप्त किंतु उपयोगी व पठनीय लेख लिखा है। दलित कहानीकार प्रेमचंद्र(चंद्रभान सिंह यादव), भारतीय सांस्कृतिक एकता के प्रतीक ऋषि अगस्तय(एम.शेषन), सामाजिक स्तरीकरण एवं संबोधन शब्द(सिंधु एस.एल.), हिंदी साहित्य के विकास में सरस्वती का योगदान(आशाराणी), एक इंच मुस्कानःएक नया प्रयोग(सविता पी.एस.) गैर हिंदीभाषी लेखकों द्वारा हिंदी में मौलिक रूप से लिखे गए आलेख हैं इनका स्तर हिंदी की अच्छी व स्तरीय रचनाओं से कहीं अधिक स्तरीय है। बी.गोविंद शेनाय की लघुकथा, आचार्य विष्णुदत्त का आलेख व डाॅ. वीरेन्द्र शर्मा की अक्षरगीता प्रभावित करती है।
अच्छा लगा यह परिचय ।
जवाब देंहटाएंकेरल से हिंदी की पत्रिका का प्रकाशन -एक सुखद खबर है .
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