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दक्षिण से प्रकाशित यह पत्रिका लगातार कम मूल्य में पाठकोपयोगी सामग्री उपलब्ध करा रही है। समीक्षित अंक में प्रकाशित आलेखों में - आज प्रश्न है प्रासंगिकता का(एस.पी. केवल), आज के विकास में हिंदी की भूमिका(कैलाश चंद्र जासवाल), अपने देश की राष्ट्रभाषा हिंदी होगी(प्रभुलाल चैधरी), हिंदी की आधुनिक रूप में उपयोगिता(श्रीमती मंजूनाथ), राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की महत्ता(डाॅ. महेश चंद्र शर्मा), हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का हिंदी साहित्य के विकास में योगदान(डाॅ. श्रीमती के. शांति), हिंदी की सांस्कृतिक परंपरा(गणेश गुप्त), कामायनी और तुलसीदास प्रबंधकाव्यों का तुलनात्मक अध्ययन(डाॅ. श्याम नंदन प्रसाद), यशपाल की कहानियों की भाषिक संरचना(डाॅ.बी.एल. नरसिंहम शिवकोटि), भारतवर्ष का अंग्रेजीकरण(डाॅ.मित्रेश कुमार गुप्त), राष्ट्रधर्मी अस्तित्ववादी चेतना(डाॅ. रंजना अरगडे), साहित्य के सौन्दर्य निकष पर कृष्णकांत के गीत(डाॅ. सूर्य प्रसाद शुक्ल) एवं कबीर की माया और तुलसी दर्शन(प्रो. ए. लक्ष्मीनारायण) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त चद्रभान राही की कहानी, जसविंदर शर्मा की लघुकथाएं एवं ओम रायजाद की ग़ज़ल एवं नरेन्द्र सिंह सिसौदिया की कविता प्रभावित करती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं एवं पत्र-समाचार आदि भी इसे पाठक के लिए रूचिकर बनाते हैं।
जानकारि के लिये धन्यवाद
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