पत्रिका: हंस, अंक: जुलाई2010, स्वरूप: मासिक, संपादक: राजेन्द्र यादव, पृष्ठ: 96, मूल्य:25रू.(.वार्षिक 2500रू.), ई मेल: editorhans@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: http://www.hansmonthly.in/ , फोन/मो. 011.41050047, सम्पर्क: अक्षर प्रकाशन प्रा.लि. 2/36, अंसारी रोड़, दरियागंज नई दिल्ली .02
कथा प्रधान इस पत्रिका के समीक्षित अंक में जनसामान्य की भावनाओं को स्वर देने वाली कहानियों को स्थान दिया गया है। इनमें - एक बंूद सहसा उछली(अशोक गुप्ता), हिरकत(सुभाष शर्मा), गांगली उर्फ द ूसरा वामन अवतार(महावीर राजी), सौगात(उषा यादव) एवं रात के पहरी(बांग्ला कहानी/अमर मित्र, अनुवाद-रतनचंद रत्नेश) शामिल है। विचार योग्य लेखों में - नोबल प्राप्ति समाचार(गौतम सान्याल) एवं मध्यमवर्ग और साहित्य संस्कृति को शामिल किया जा सकता है। शेष आलेख पता नहीं क्या सोचकर हंस में शामिल किए गए हैं? जिंदा कहानी के अंतर्गत प्रकाशित कथा ‘कांच की बारीक दीवार ढहने के इंतजार में’ कहींे से भी जिंदा कहानी नहीं लगती है। इस बार की कविताएं अवश्य ही प्रभावित करती है। लगता है हंस की कविताओं व ग़ज़लों का स्तर दिन प्रतिदिन सुधरता जा रहा है। इनमें देवेन्द्र आर्य, अरूण आदित्य, शमीम हनफ़ी, अनिल पठानकोठी, सिद्धेश्वर रचनाओं का बहुत संुदर ढंग से निर्वाहन कर सके हैं। ‘बीच बहस में’ के अंतर्गत वरिष्ठ कथाकार लेखिका मैत्रेयी पुष्पा व नंदलाल जायसवाल के आलेख ही विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं। शेष में कोई नवीनता नहीं दिखाई देती है। इस अंक में शीबा असलम फहमी का लेख आइए पर्दे और... पत्रिका की उड़़ान में सहायक हुआ है। पत्रिका की समीक्षाएं, पत्र समाचार व वरिष्ठ आलोचक लेखक नंद भारद्वाज का लेख पूर्व के अंकों की तरह प्रभावित करते हैं।
एक टिप्पणी भेजें