पत्रिका: समावर्तन, अंक: जून 10,स्वरूप: मासिक, संपादक: रमेश दवे, पृष्ठ: 114, मूल्य:25रू.(वार्षिक 250रू.), ई मेल: samavartan@yahoo.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान, उज्जैन म.प्र.
म.प्र. से प्रकाशित अग्रणी मासिक साहित्यिक पत्रिका समावर्तन का समीक्षित अंक ख्यात कथाकार, लेखक, विचारक एवं शिक्षाविद् रमेश दवे जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एकाग्र है। पत्रिका में उनके द्वारा संपादकीय के स्थान पर लिखे गए अन्तर्मुख से उनके संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उनकी कविताएं, कहानियां निबंध व अन्य रचनाएं उनसे और भी अधिक गहराई तक परिचित कराती है। उनके समग्र पर लिखे गए आलेखों में श्याम संुदर निगम, कृष्णदत्त पालीवाल, गिरीश रस्तोगी, ख्यात आलोचक परमानंद श्रीवास्तव, ज्योत्सना मिलन, वरिष्ठ आलोचक प्रो. रमेशचंद्र शाह, निबंधकार, संपादक व लेखक डाॅ. प्रभाकर श्रोत्रिय के लेख सहेजकर रखने योग्य हैं । इन आलेखों से पाठक श्री रमेश दवे से परिचित तो होगें ही साथ ही साहित्य जगत की विगत पचास वर्ष की गतिविधियों की जानकारी भी प्राप्त कर सकेगें। उर्मिला शिरीष से उनकी बातचीत सिर्फ बातचीत न होकर साहित्य की वर्तमान से लेकर अतीत तक की गतिविधियों पर गहन दृष्टि डालने का जरिया बन पड़ा है। वरिष्ठ लेखक प्रमोद त्रिवेदी, कुमार विनोद, सुधा श्रीवास्तव, प्रदीप कांत की कविताएं लगता है श्री रमेश दवे जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल रही हैं। परशुराम शुक्ल व सुदिन श्रीवास्तव की ग़ज़लें एवं तारिक असलम तस्नीम की कहानी पठनीय है। डाॅ योगेन्द्र नाथ शुक्ल, संतोष सुपेकर एवं राधेश्याम पाठक उत्तम की लघुकथाएं पत्रिका को विस्तार देती है। ख्यात शास्त्रीय संगीत गायक अजय चक्रवर्ती से प्रभात कुमार भट्टाचार्य की बातचीत भारतीय शास्त्रीय संगीत से गहराई तक परिचित कराती है। निवेदिता शर्मा सुरेश पण्डित, राग तेलंग के कलालेख भारतीय कला-संस्कृति एवं पाठकों के मध्य सेतु का कार्य करते हैं। ब्रज श्रीवास्तव, भालचंद्र जोशी, एंव मीनाक्षी जोशी की संग्रह/पुस्तक समीक्षाएं इन्हें पढ़ने के लिए पे्ररित करती हैं। महेश मलिक की सुरीली दस्तक विनय उपाध्याय के मार्फत पाठकों में संभावना जगाती है कि कला जगत भी तकनीक से कम महत्वपूर्ण नहीं है। समावर्तन के सहेजने योग्य इस अंक पर पूरी पत्रिका टीम बधाई की पात्र है।
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