
कथाप्रधान मासिक हंस के इस अंक में प्रकाशित रचनाएं वर्तमान में मानव के मध्य चल रही अंधी प्रतिस्पर्ध का दर्द व्यक्त करती हैं। अंक की कहानियां पढ़कर इस कथन की पुष्टि हो जाती है। प्रकाशित कहानियों में नींद का ज़र्द लिबास(जाहिदा हिना), गांठ(दलपत चैहान), रस प्रवाह(नीलम कुलश्रेष्ठ), अपनी अपनी गोट(जोतिन्दर सिंह सोहेल) शामिल हैं। कविताओं में किरण अग्रवाल, मनीष मिश्रा, रंजना श्रीवास्तव व महेश चंद्र पुनेटा की कविताएं प्रभावशाली हैं। हंस में विगत कुछ माह से कविताओं का स्तर बहुत अधिक सुधरा है यह जानकार प्रसन्नता होती है। बीच बहस में के अंतर्गत प्रकाशित रचनाओं में सुधीर विद्यार्थी, खुशीराम यादव, अनवर सोहेल, सीमा शर्मा व हसन जमाल के विचार पत्रिका का स्वर मुखरित करते हैं। लघुकथाओं में पूरन सिंह, योगेन्द्र शर्मा, मंशा याद व सुशांत सुप्रिय ने कुछ अलग हटकर प्रयोग किए हैं जिनसे लघुकथाओं का स्वर प्रभावी हो गया है। संजय राज की ग़ज़ल तथा सुरेश सेन का आलेख किताबें जिन्होंने मुझे बिगाड़ा पठनीय व जानकारीप्रद है। ख्यात कथाकार स्व. मार्कण्डेय से आनंद प्रकाश की बातचीत कथा विधा के साथ साथ साहित्य की पिछली उपलब्धियों पर विचार करती दिखाई देती है। रेतघड़ी स्तंभ के अंतर्गत डाॅ. राही मासूम रज़ा, मृदुला सिन्हा व गीता गैरोला द्वारा पे्रषित समाचार देश भर की प्रमुख साहित्यिक गतिविधियों की जानकारी देते हैं। पत्रिका की समीक्षाएं अन्य स्थायी स्तंभ व संपादकीय पूर्ववर्ती अंकों के समान विचार योग्य हैं।
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं---------
इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?
एक टिप्पणी भेजें