पत्रिका: कथादेश, अंक: मई10, स्वरूप: मासिक, संपादक: हरिनारायण, पृष्ठ: 98, मूल्य:20रू.(वार्षिक 200रू.), ई मेल: kathadeshnew@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं , फोन/मो. 011.22570252, सम्पर्क: सी-52, जेड़-3, दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110.095
प्रधान मासिक पत्रिका कथादेश का समीक्षित अंक विविधतापूर्ण रचनायुक्त है। प्रकाशित कहानियों में गांधी रोज बिकता है(राजेश मलिक), बेटियों का घर(रामकुमार सिंह), धूप के टुकड़े(मनीष वैद्य), कस्बाई कनेशंस एण्ड फील्ड मैसेज(अनुराग शुक्ला), डेन्यूब के पत्थर(वरूण), प्रेम की उपकथा(डाॅ. दुष्यंत) एवं हत्या(किरण सिंह) शामिल हैं। कहानी गांधी रोज बिकता है में क्रिकेट के मार्फत देश में नैतिकता के अवमूल्यन पर विचार किया गया है। डाॅ. दुष्यंत की कहानी प्रेम की उपकथा अलौकिक, अवास्तविक प्रेम के स्थान पर यथार्थ को प्रेम अभिव्यक्ति का माध्यम बनाती है। संपादक लेखिका रमणिका गुप्ता व वीरेन्द्र कुमार वरनवाल अपने अपने आलेखों में गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। रंगमंच पर हषीकेश सुलभ व देवेन्द्र राज अंकुर मोबाईल संस्कृति से परे हटकर विचार करते दिखाई देते हैं। समीर वरण नंदी, विष्णु खरे, रवीन्द्र त्रिपाठी एवं विश्वनाथ त्रिपाठी के आलेख कुछ अधिक विस्तार पा गए हैं ये बातें कम शब्दों में बेहतर तरीके से कही जा सकती थी। निरर्थक विस्तार से पाठकों में एक उब तथा खींज उत्पन्न होती है। सत्यनारायण जी की डायरी, अविनाश का इंटरनेट मोहल्ला एवं अन्य समीक्षाएं इस पत्रिका को साहित्येत्तर रूप प्रदान करती हैं। बजरंग बिहारी तिवारी जी का मलयालम दलित कविताओं को अनुवाद इस पत्रिका की एक अविस्मरणीय प्रस्तुति है जिसे प्रत्येक पाठक अवश्य ही पसंद करेगा। पत्रिका की अन्य रचनाएं भी इस पत्रिका के गंभीर पाठक के रसास्वादन की पूर्ति करती है।
बहुत सुंदर जानकारी जी. धन्यवाद
ردحذفबहुत सुन्दर समीक्षा ...हार्दिक बधाई.
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'शब्द-शिखर' पर ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
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