पत्रिका: समावर्तन, अंक: अपै्रल10, स्वरूप: मासिक, संस्थापक: प्रभात कुमार भट्टाचार्य, अध्यक्ष संपादक: रमेश दवे, प्रधान संपादक: मुकेश वर्मा, पृष्ठ: 98, मूल्य:25रू.(वार्षिक 250रू.), ई मेल: samavartan@yahoo.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान उज्जैन म.प्र.
पत्रिका का समीक्षित अंक अज्ञेय जी के तार सप्तक के प्रमुख कवि व साहित्य मर्मज्ञ नंद किशोर आचार्य जी पर एकाग्र है। उनके समग्र व्यक्तित्व पर कलात्मक ढंग से विचार किया है। उनकी कविताएं, संस्मरण, समकालीन सर्जक व रंग-परंपरा की प्रासंगिकता में पाठक की साहित्य के प्रति रूचि जाग्रत करने पूरी तरह सक्षम है। शैलेन्द्र कुमार शर्मा व अनिरूद्ध उमठ ने उनके नाटकों व कथासाहित्य पर आलोचनात्मक ढंग से दृष्टिपात किया है। वे राजाराम भादू से बातचीत में स्पष्ट करते है कि ‘‘सृजन के इतिहास में चुनौतियां सदैव रही हैं।’ पत्रिका दूसरा खण्ड फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे अजीम तरीन अदबी पर गौर फरमाता है। इस खण्ड में धनंजय वर्मा ग़ज़लों, नज़्म व कतअ पर तनकीदी नज़रिए से विचार करते हैं। संजय माथुर, श्याम संुदर दुबे तथा ुमार सुरेश की कविताएं कलात्मकता के साथ साथ वास्तविकता लिए हुए हैं। ख्यात संस्मरणकार कांतिकुमार जैन का संस्मरण ‘बैकुंठपुर कहां है?’ पढ़कर पाठक उनके अनुगामी हो जाएगा। के.पी. सक्सेना दूसरे, रमेश चंद्र शाह की लघुकथाएं व अमर गोस्वामी का रमानाथ राय की बंग्ला कहानी ‘अश्रुबिंदु’ का तजुर्मा लाजबाव है। सागर शहर के साहित्यिक वातावरण को विस्तार देता खण्ड इस नगर की विरासत के दर्शन कराता है। सागर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति शिवकुमार श्रीवास्तव, ख्यात कवि अशोक वाजपेयी, प्रसिद्ध कवि रमेश दत्त दुबे व ध्रुव शुक्ल को आज साहित्य जगत में कौन नहीं जानता? जग प्रसिद्ध फीचर फ़िल्म बाॅबी का गीता ‘‘झूठ बोले कौवा काटे, कालेे कौवे से डरियो ....... के माध्यम से रातों रात शिखर पर पहंुचे गीताकार विठ्ठल भाई पटेल से सरोकार व उनकी कविताएं अच्छी लगीं। सत्यमोहन वर्मा से बातचीत मंे वे साहित्य की चुनौतियों पर अपनी बात पुरजोर तरीके से रखते हैं। पत्रिका की अन्य रचनाएं, गीत, ग़ज़लें व समीक्षाएं इसे सर्वस्वीकार पत्रिका का दर्जा दिलाते हैं।
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