पत्रिका: नया ज्ञानोदय, अंक: अपै्रल10, स्वरूप: मासिक, संपादक: रवीन्द्र कालिया, पृष्ठ: 120, मूल्य:30, ई मेल: nayagyanodaya@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: http://www.jnanipith.net/ , फोन/मो. 011.24626467, सम्पर्क: भारतीय ज्ञानपीठ 18, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड़, नई दिल्ली 110003(भारत)
नया ज्ञानोदय का यह अंक भारत भारती विशेषांक है। पत्रिका में मराठी कवि विन्दा करंदीकर, हिंदी के ख्यात कथाकार मार्कण्डेय, सन्तोखसिंह धीर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। विन्दा करंदीकर पर पुष्पा भारती ने अपने आलेख में उनके समग्र लेखन पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है। संपादक श्री रवीन्द्र कालिया जी ने मार्कण्डेय पर अपने स्मरण में उनकी सहजता व सरलता का उल्लेख विशेष रूप से किया है। भारत भारद्वाज ने हंसा जाई अकेला कहानी को आधार बनाकर मार्कण्डेय जी के शिल्प व जीवन शैली को अपनी विचारदृष्टि दी है। संतोखसिंह धीर की ख्यात कहानी ‘कोई एक सवार’ के मार्फत रवीन्द्र कालिया ने कथापात्र तांगेवाले की विवशता व उसकी जीवन यापन की समस्या पर विचार किया है। अंक में प्रमुखता से बांग्ला, ओडिया व पंजाबी कहानी के तजुर्मे साए किए गए हैं। इन तजुर्मे में कथारस ज्यांे का त्यों बना हुआ है यही इसकी विशेषता है। इनमें प्रमुख हैं- हंसा जाई अकेला(मार्कण्डेय), कोई एक सवार(संतोखसिंह धीर-अनुवादःकेवल गोस्वामी), लंगड़ा कुक्कड़(बलविंदर सिंह बराड़-पंजाबी से अनुवादःसुभाष नीरव), अजातसुंदरी(मनमोहन बावा), कीर्तिनाश के दो किनारे(सुनील गंगोपाध्याय-अनुवादःलिपिका साहा), नन्द भौजाई की रसोई(तिलोत्तमा मजूमदार-अनुवादःजलज भादुडी), एक अजाने जनपद की उपकथा(जय भद्र-अनुवादःसुशील गुप्ता), झूठी(रमाकांत रथ-अनुवादःसुजाता शिवेन), रूद्रावतार(प्रतिभा राय-अनुवादःराजेन्द्र प्रसाद मिश्र) एवं वही लड़की(दाशरथि भूर्या-अनुवादःरजनी पंडा)।
प्रकाशित कविताओं में शून्य संहिता(सीताकांत महापात्र-अनुवादःमहेन्द्र शर्मा), कवि की मां, कहां है मेघ कहां प्रिय(मनोरमा विश्वाल महापात्र-अनुवादःराजेन्द्र प्रसाद मिश्र), मां के जाने का समय, बातचीत(प्रतिभा शतपथी-अनुवादःराजेन्द्र प्रसाद मिश्र) एवं दाम्पत्य, प्रेम,जीवन, मृत्यु(दुर्गाप्रसाद पंडा-अनुवादःसुजाता शिवेन) प्रमुख हैं।
पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं एवं यात्रा वर्णन एवं स्मरण भी संग्रह योग्य व पठ्नीय है।
bahut achcha ank hai .
ردحذفजी पढने की कोशिश करेंगे.
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