पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: मार्च10, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 56, मूल्य: 05रू.(वार्षिकः 50रू.), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: उपलब्ध नहीं, सम्पर्क: हिमाचल प्रदेश प्रिटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला .05
हिमप्रदेश की पत्रिका हिमप्रस्थ का समीक्षित अंक समसामयिक आलेखों से समृद्ध है। अंक में हिंदी कहानी में भाषा व शिल्प के नए प्रयोग(राजेन्द्र राजन), नागार्जुन के काव्य में स्त्री(डाॅ. प्रभा दीक्षित), नई कविता के कबीरःभवानी प्रसाद मिश्र(डाॅ. रामसिंह यादव), हिमाचल प्रदेश में पत्रकारिता(नारायण शिवशक्ति ठाकुर) एवं महाकवि कालीदास और रामटेक(डाॅ. सुरेन्द्र शर्मा) प्रमुख आलेख हैं। इन आलेखों में पाठक बहुत ही उपयोगी व संग्रह करने योग्य सामग्री प्राप्त करता है। कहानियों में सुरक्षा(डाॅ. ओमप्रकाश सारस्वत), आंचल(तिलकान) एवं खेल जारी है(जसविंदर शर्मा) प्रभावशाली हैं। आकांक्षा यादव व अखिलेश शुक्ल की लघुकथाएं आज के वातावरण में व्यप्त भ्रष्टाचार पर प्रकाश डालती है। डाॅ.जयपाल ठाकुर, अनंत आलोक, रूचि शर्मा, डाॅ. सुरेश उजाला व वीरेन्द्र गोयल की कविताएं नई कविता होते हुए भी हमारी से संस्कृति से जोड़े रखने में सफल रही हैं। पत्रिका में दो अति महत्वपूर्ण व्यंग्य भी प्रकाशित किए गए हैं। चीडे की पाठशाल(अशोक गौतम) व कलयुगी नौनिहाल(राजेन्द्र परदेसी)। व्यंग्य कलयुगी नौनिहाल आज के बच्चों द्वारा माता पिता से की जा रही अपेक्षाओं पर कटाक्ष करता है। इसमे परदेसी जी ने पालकों की लाचारी को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। पत्रिका के अन्य स्तंभ, समीक्षाएं व रचनाएं भी उपयोगी व संग्रह योग्य हैं।

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  1. एक अनुरोध - आपके पोस्‍ट का फीड सबस्‍क्रिप्‍शन मेल में फोंट का साईज बहुत छोटा है इसे बडा करें. देखें यह पोस्‍ट - http://aarambha.blogspot.com/2010/04/blog-post_13.html

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