पत्रिका-पे्ररणा, अंक-जुलाई-दिसम्बर.09, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-अरूण तिवारी, पृष्ठ-212, मूल्य-20रू.(वार्षिक 100रू.), फोनः (0755)2422109, ईमेल prerna_magazine@yahoo.com, website http://www.prernamagazine.com/ , सम्पर्क-ए.74, पैलेस आर्चड़ फेज.03, सर्वधर्म के पीछे, कोलार रोड़, भोपाल म.प्र. 462042
पत्रिका prerna का समीक्षित अंक कहानी विशेषांक है। अंक में कहानियों के साथ साथ अन्य विधाओं को भी समुचित स्थान दिया गया है। सभी कहानियां व लघुकथाएं मानवीय संवेदना से जुड़ी हुई रचनाएं हैं। इन रचनाओं में लेखक के व्यक्तिगत अनुभव की अपेक्षा आम जीवन से जुडे़ यथार्थ को कहानी का रूप दिया गया है। बलराम, प्रदीप पंत, सूर्यकांत नागर, सुषमा मुनीन्द्र, राहजेन्द्र परदेसी, जयंत, गोपाल काबरा एवं ष्याम सुंदर चैधरी की कहानियां अनुभव के आसपास बुनी हुई हैं। सुरेन्द्र गुप्ता, मुकुट सक्सेना, डाॅ. प्रभा दीक्षित, कमल चोपड़ा एवं रामरतन यादव की लघुकथाएं भी कलेवर में भले ही लघु हों लेकिन अपने कथन के दृष्टिकोण से विशाल हैं। बलराम गुमास्ता, राजेन्द्र उपाध्याय, वीणा जैन एवं हरपाल सिंह के आलेख सृजन पर अच्छी बहस प्रस्तुत करते हैं। ख्यात आलोचक संपादक कमला प्रसाद जी से पत्रिका के संपादक अरूण तिवारी तथा बलराम गुमास्ता की बातचीत उनके अंतरंग को खोलने के साथ साथ आज के वर्तमान साहित्य व उसकी दिशा व दशा पर भी विश्लेषण प्रस्तुत करता है। पत्रिका की समीक्षाएं अन्य रचनाएं व मुद्रण आकर्षक व प्रभावशाली है। पत्रिका के संपादन में संपादक व उनकी टीम का श्रम झलकता है।
"अब तक इस ब्लॉग पर पत्रिकाओं का बहुत अच्छा संकलन तैयार हो चुका है!"
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मिलत, खिलत, लजियात ... ... ., कोहरे में भोर हुई!
लगी झूमने फिर खेतों में, ओंठों पर मुस्कान खिलाती!
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संपादक : सरस पायस
बहुत सुंदर जानकारी
ردحذفमेरे घर में यह पत्रिका आती है। अच्छी जानकारी।
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