पत्रिका-कथादेश, अंक-दिसम्बर.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-हरिनारायण, पृष्ठ-98, मूल्य-20 रू.(वार्षिक 200रू.), सम्पर्क-सहयात्रा प्रकाशन प्रा.लि. सी.52, जेड़.3, दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110095
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कथाप्रधान पत्रिका कथादेश का दिसम्बर.09 अंक कई मायने में श्रेष्ठ है। इस अंक की कहानियां तो विचार योग्य हैं ही अन्य रचनाएं व संस्मरण आदि भी बहुत दिन तक याद रखे जाएंगे। पत्रिका में चार कहानियां प्रकाशित की गई हैं। ये चारों कहानियां रचनात्मकता के साथ साथ रसास्मकता भी लिए हुए है। विशेष रूप से ‘हजारों साल का हिसाब(सीतेश आलोक), स्खलन(मनोज रूपड़ा) ऐसी कहानियां हैं जो आज के बदलते समाज व उसके भविष्य तथा संभावनाओं पर दृष्टिपात करती हैं। गिरिराज किशोर जी का आलेख ‘विष्णु जी के बेटे अतुल की डायरी पढ़ते हुए’ हिंदी साहित्य ही नहीं विश्व की किसी भी भाषा के साहित्य के लिए उपलब्धि है। अनिल सिन्हा व वीरेन्द्र कुमार वरनवाल के आलेखों में विषय की विविधता का गहराई से अंकन किया गया है। ख्यात कवि ओम प्रकाश वाल्मिकी ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने कठोर तप से साहित्य में अपना स्थान बनाया है। बजरंग विहारी तिवारी ने उनकी रचनात्मकता पर संुदर ढंग से लिखा है। श्यौरसिंह बेचैन, संृजय, हषीकेश सुलभ एवं देवेन्द्रराज अंकुर अपने अपने ढंग से रचना प्रक्रिया, रंगमंच आदि विषयों पर अपनी बात रखते हैं। ब्रजेश, विभांशु दिव्याल, अनिल चमडिया, विश्वनाथ त्रिपाठी एवं रवीन्द्र त्रिपाठी लगातार लिख रहे हैं और अच्छा लिख रहे हैं। लेकिन कभी कभी उनके आलेखों को पढ़कर लगता है कि इस कहीं पढ़ा है। यह भाषा एवं विषयों की दुहराव की वजह से है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, पत्र, समीक्षाएं भी इसे स्तरीय बनाती है।
विशेषः इस संवाद में खुलेपन का आव्हान है, जनतंत्रात्मकता है, वैचारिक श्रेष्ठता के अहंकार का विरोध, समन्वय का स्वागत है। वे परंपरागत सोच को नई सोच में बदलने के पक्ष में हैं.....(विष्णु जी के बेटे अतुल की डायरी पढ़ते हुए) कथादेश से साभार
बहुत सुंदर जी
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