
पत्रिका समय के साखी ने अल्प समय में ही हिंदी साहित्य जगत में अपना स्थान बनाया है। समीक्षित अंक में दो महत्वपूर्ण आलेख सम्मलित हैं। इन आलेखों का स्वर मानवतावादी है। भूमण्डलीय यथार्थवाद और उससे आगे(विनोद शाही) तथा भीष्म साहनी के नाटकों मेे समसामयिक समस्या(नंदलाल जोशी) अपनी अपनी तरह से साहित्य के मूल तत्व की व्याख्या करते हैं। कहानियों में ‘मुंकुदी-मेरे पुरूष मेरे पति’(मंजु अरूण), लाॅस वेगस की रात(कमल कपूर) तथा विश्वास(अखिलेश शुक्ल) आज के समय तथा उससे जुड़े हुए सरोकारों पर गहन गंभीर विमर्श प्रस्तुत करती हैं। प्रभा दीक्षित, राग तेलंग, कुमार विश्वबंधु की कविता तथा भगवत पठारिया की ग़ज़ल भी सहज ही ध्यान आकर्षित करती है। समीक्षा, गतिविधियां, पत्र साखी तथा अन्य स्तंभ भी पत्रिका को व्यापक बनाते हैं।
विशेषः ‘क्या अब वंदेमातरम् गीत के समान राष्ट्रभाषा भी भीख की पंक्ति में खड़ी होगी?’.......शेष भाग पत्रिका में पढ़िए(समय के साखी से साभार)
बहुत गम्भीर बात कही है आपने। इसके लिए सभी हिन्दी भाषियों को एकजुट होना होगा।
जवाब देंहटाएंजिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
बहुत सुंदर बात कही आप ने
जवाब देंहटाएंयह एक गंभीर चिंतन का विषय है ... कुछ जागरूकता से काम नहीं चलेगा ..... जागो भारत के वासियों जागो
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