पत्रिका-अणु कन्या, अंक-03जून(दूसरा वर्ष).09, स्वरूप-उल्लेख नहीं, संपादक-एम. कृष्णचंद्र राव, पृष्ठ-68, मूल्य-केवल निजी वितरण के लिए, सम्पर्क-कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट, कुडनकुलम पोस्ट, राधापुरम तालुक, तिरूनेलवेली, तमिलनाडू 627.106 (भारत), ईमेलः mkrao@kknpp.com
आकर्षक रंगीन मुद्रण व साज सज्जा से युक्त पत्रिका अणुकन्या सहेज कर रखने योग्य पत्रिका हैै। पत्रिका का स्वरूप हिंदी भाषा के उपयोग व शासकीय संस्थानों में उसके सुनियोजित विस्तार पर केन्द्रित है। इस अंक में प्रकाशित प्रमुख आलेखों में एम. आई. जाॅय एवं शशांक कुमार नामदेव के आलेख संस्थान की प्रगति को रेखांकित करते हैं। राजभाषा हिंदी और महात्मा गांधी(बालशोरि रेडडी), विदेशी मानसिकता से कैसे मुक्त हों(बद्रीनारायण तिवारी), भारतेन्दु हरिशचंद्र और उन्नीसवीं शताब्दी में हिंदी आंदोलन(एम.आर.आर. नायडू), ाहीम(एम.आर.आर.नायडू), संरक्षा मेरी जिम्मेदारी(एल.के. शर्मा), जतिंदर नाथ दास और शहीद कोच(डाॅ. के.के. खुल्लर, अनुवाद-एम. कृष्णराव), महापुरूष एक ही प्रयत्न में शिखर पर नहीं पहंुचे(भीमसिंह कर्दम) तथा जब शब्द गूंगे हो जाएंगे(डाॅ. प्रसेनजीत चैधरी) अच्छे आलेख हैं। इनमें भारतीय हिंदी साहित्य की समसामयिक धारा के साथ साथ प्राचीन विचारों तथा सिद्धांतों को समाहित कर पत्रिका ने इसे आम जन के लिए भी उपयोगी बना दिया है। अंग्रेजी का प्रयोग बिना अर्थ के(बद्रीनारायण तिवारी), परिश्रम सफलता की कंुजी(संजय गोस्वामी) आलेख आम युवा के साथ साथ सभी पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं। भारत की उन्नति में हिंदी का योगदान(लक्ष्मीनारायण दुबे), राजभाषा वनवास(एम.आर.आर. नायडू) अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत करते हंै। पत्रिका सभी के लिए समान रूप से उपयोगी है। इस अच्छे अंक के लिए पत्रिका के संपादन से जुडे अधिकारी बधाई के पात्र हैं।
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