
इस ख्यात पत्रिका का कोई अंक बहुत दिनों के बाद मिला है। इसकी वजह अंचल भारती के संपादक जयनाथ मणि त्रिपाठी का स्वास्थ्य खराब होना है। लेकिन फिर भी पत्रिका निखर कर आई है। अंक में प्रकाशित कविताओं में निशांत, सुरेन्द्र दीप, राकेश चंद्रा, ओम नागर, सुशांत सुप्रिय, विजय कुमार सम्पति एवं डाॅ. रामनिवास मानव विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। अक्षय गोजा तथा ऋषिवंश की ग़ज़लें आधुनिक संदर्भ तथा समय का संवाद प्रतीत होती हैं। ख्यात आलोचक डाॅ. परमानंद श्रीवास्तव से डाॅ. रजनी श्रीवास्तव की बातचीत आज हिंदी साहित्य जगत की रिक्तता पर विचार करती दिखाई देती है। राजेन्द्र परदेसी ने गगनांचल के संपादक अजय कुमार गुप्ता से बातचीत करते हुए राष्ट्रभाषा एवं वैज्ञानिकता तथा विशिष्ट पाठक वर्ग की उपलब्धता पर विचार किया है। डाॅ. कन्हैया सिंह, रामनारायण सिंह मधुर, विजयशंकर विकुज, विलास गुप्ते एवं डाॅ. अजीत गुप्ता के आलेख साहित्य के विभिन्न विषयों पर विचार दृष्टि प्रस्तुत करते हैं। अखिलेश शुक्ल, श्याम सखा श्याम, केशव प्रसाद वर्मा एवं किरन मराली की कहानियां अपनी विविधता एवं विषय वस्तु के माध्यम से विशिष्ट छाप छोड़ती हैं। पत्रिका के अन्य स्तंभ एवं रचनाएं उल्लेखनीय हैं व साहित्य जगत में अवश्य ही अपना स्थान बनाएंगी।
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