पत्रिका-साहित्य परिक्रमा, अंक-अक्टूबर-दिसम्बर.09, स्वरूप-त्रैमासिक, प्रबंध संपादक-जीतसिंह जीत, संपादक-मुरारीलाल गुप्त ‘गीतेश’, पृष्ठ-64, मूल्य-15रू.(वार्षिक-60रू.), संपर्क-अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास, राष्ट्रोत्थान भवन, माधव महाविद्यालय के सामने, नई सड़क ग्वालियर म.प्र., फोनः(0751) 2422942
साहित्य परिक्रम के समीक्षित अंक 35 की रचनाएं देश के विभिन्न भागों से भिन्न संस्कृति को अपने आप में समेटे हुए है। चिंतनधारा के अंतर्गत प्रकाशित आलेख आत्मशुद्धि(श्री स्वामी सत्यमित्रनंद जी) प्रत्येक व्यक्ति को पढ़कर जीवन में उतारने योग्य सामग्री प्रस्तुत करता है। मानव जीवन में आध्यात्मिक चेतना(कैलाश त्रिपाठी) एवं हिंदी ग़ज़ल की भाषा(उदयभानु हंस) विषयवस्तु के विस्तार में जाकर अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। आलेख ‘साहित्य में बाज़ारवाद’(अम्बाप्रसाद श्रीवास्तव) नव साहित्यकारों के साथ साथ साहित्य के जानकारों के लिए भी संग्रह योग्य है। लक्ष्मीपुत्र भामाशाह की राष्ट्रभक्ति(लक्ष्मण सिंह सेनी) विशेष रूप से आकर्षित करता है। बेसगरहल्ली रामण्णा का आलेख आओ प्रभा करूणामयी तथा लीला वान्दिवडेकर का यात्रा वृतांत गोवा की समाज संस्कृति और प्राकृतिक छटा पाठक को आदि से अंत तक बांधे रखता है। कहानियों में सलाम आजाद, प्रवीण आर्य, द्वारिकालाल गुप्त, कुमुद कुमार एवं राकेश सिंह सिसौदिया कथ्य के साथ अच्छी विषयवस्तु प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं। अशोक गौतम का व्यंग्य अंधेर नगरी के पार्ट वन की कहानी को सच्चे अर्थो में विस्तार दे पाया है। राद्यवेन्द्र तिवारी, अनुपमा चैहान, कमल किशोर, कीर्तिवर्धन, कुमार शर्मा ‘अनिल’, सूर्यकुमार पाण्डेय, कृष्ण बिहारी सहल, डाॅ. मृगेन्द्र राय, रोहित शुक्ल, कान्ता शर्मा एवं डाॅ. रमाकांत शर्मा की कविताएं पत्रिका को पूर्णता प्रदान करती है। अच्छे अंक की प्रस्तुति व विविधता के लिए श्रीधर पराड़कर जी व उनके सहयोगी के साथ साथ डाॅ. बलवंत जानी एवं श्री रामनारायण त्रिपाठी बधाई के पात्र हैं।

4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने
    दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को शुभकामनाएं

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  2. सुंदर जानकारी !!
    पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
    जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

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