
समीक्षा- प्रथम भाग
पत्रिका के मई अंक में प्रकाशित प्रमुख कहानियों में शहर में घूमता एक फौजी सिपाही(मनमोहन बाबा), बर्बादी.काम(सुभाष शर्मा), क्यूटीपाई(सोनाली सिंह) तथा दौड़(श्याम कुमार पोकरा) प्रमुख है। संजीव का आलेख पुरानी किताबों की पुरानी पड़ती दुनिया पत्रिका का प्रमुख आलेख है। हमेशा की तरह सीबा असलम फहमी ने संविधान और कबिला में एक नया विषय उठाया है। डाॅ. धर्मचन्द्र विद्यालंकार, सोनी सिंह तथा पुण्य प्रसून वाजपेयी के आलेख समसमयिक हैं। अभय कुमार दुबे ने राजनीति तथा गठजोड़ को साहित्य के नजरिये से देखने का प्रयास किया है।
डाॅ. ओम प्रभाकर व दिनेश कुशवाह की ग़ज़लें नए संदर्भो को छूती हुई दिखाई देती हैं। पत्रिका में भारत भारद्वाज के आलेख सहित सभी स्थायी स्तंभ, समीक्षाएं आदि पत्रिका की प्रतिष्ठा के अनुरूप हैं। शीबा जी को लिखे गए पत्र के रूप में संपादकीय पठनीय रचना बन गई है। विष्णु प्रभाकर को याद करते हुए उनसे संबंधित संस्मरण के रूप में संपादकीय का दूसरा भाग और भी विस्तृत लेखन की मांग करता है।
(पत्रिका की विस्तृत समीक्षा अगले अंक में)
बहुत सुन्दर अखिलेश जी आनन्द आ गया ।
ردحذفशास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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अभी-अभी हंस का ये अंक संपन्न किया है....अच्छी समीक्षा की है आपने
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