
पत्रिका का समीक्षित अंक एक सार्थक व उपयोगी प्रस्तुति है। अंक मंे चार कहानियां संकलित हैं जिनमें- फलवाला(ओम उपाध्याय), बेटा(विनोद कुमार शौख), एक भरोसेदार पागल(कुंवर पे्रमिल) तथा मन है जात अजौं वहीं(आशारानी लाल) हैं। परती परिकथा पर डाॅ. चम्पासिंह का आलेख इस उपन्यास को एक नये दृष्टिकोण से देखने का प्रयास है। अरविंद कुमार उपाध्याय ने मेत्रैयी पुष्पा के साहित्य को विश्लेषणात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 
व्यंग्य में डाॅ. कौशल किशोर श्रीवास्तव का व्यंग्य ‘भागकर पे्रम और विवाह’ एक गुदगुदाने वाली रचना है। राज किशोर राजन, विजय उपाध्याय मेरठी, बी.पी. दुबे, गोपाल कृष्ण सक्सेना, पूनम गुजरानी, केवल गोस्वामी, डाॅ. बेकस की कविताएं अच्छी हैं। पत्रिका के अन्य स्तंभ व समीक्षाएं प्रभावित करती हैं। अच्छे अंक के लिए संपादक बधाई के पात्र हैं।
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