
हर अंक की तरह पत्रिका कथन का यह अंक भी उल्लेखनीय है। समीक्षित अंक में मुख्य रूप से मीडिया और जनतंत्र पर विशेष पठनीय सामग्री प्रकाशित की गई है। इस विषय पर आयोजित परिचर्चा में सेवंती निनान, गौहर रज़ा, अमित सेनगुप्ता, पंकज पचैरी, जवरीमल्ल पारख, रामशरण जोशी ने गहन गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया है। संजन कुदंन व सी. भास्करराव की कहानियां भी अच्छी रचनाएं हैं। प्रख्यात कवि सुदीप बनर्जी पर चन्द्रकांत देवताले का संस्मरण तथा उनकी कविताओं के साथ साथ एकांत श्रीवास्तव, कुमार विनोद, गोविंद माथुर की कविताएं जनतंत्र को शक्ति देती दिखाई देती हैं। अहमद नदीम कासमी की कहानी ‘थल’ उर्दू साहित्य की अच्छी रचनाओं में शीघ्र ही शुमार होगी। जवरीमल्ल पारख का फिल्म पर एकाग्र आलेख तथा उत्पल कुमार की विशेष समीक्षा हमेशा की तरह धारयुक्त तथा सटीक हैं। Jaipur_Hotels
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पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ तथा रचनाएं इसे हिंदी की अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं से अलग महत्वपूर्ण स्थान दिलाते हैं।
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