
साहित्य अमृत के मार्च 2009 अंक में विविध साहित्यिक सामग्री है। इसमें ‘अंबिका प्रसाद द्विव्य के गीत, कैलाश पचैरी, अरूणेश नीरन की कविताएं प्रभावित करती है। मेजर रतन जांगिड़ की कहानी ‘पीली आंधी उजली धरती’ राजस्थानी पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक अच्छी समसामयिक रचना है। सारंग बारोट की कहानी ‘मां’ (गुजराती से गोपालदास नागर द्वारा अनुवादित) मां के व्यक्तित्व व उनके विभिन्न पहलूओं पर प्रकाश डालती है। होली त्यौहार पर शशिष कुमार निवारी की कविता समाज के कमजोर वर्ग द्वारा त्यौहारांे पर महज खानापूर्ति करने व उसके मनाने के लिए की जाने वाली जद्दोजहद पर विचार करती हुई दिखाई देती है। हरदयाल का आलेख ‘शेखरः एक जीवनी’, रागेय रांघव का काव्य् जगत’(शक्ति त्रिवेदी) तथा श्रवण तट रत्नं हरिकथा’(प्र्रेमप्रकाश पाण्डेय) अपने अपने विषयों को विस्तार से उठाते हुए दिखाई देते हैं। भरत चंद्र मिश्र का संस्मरण, नरेन्द्र मोहन के डायरी अंश तथा मोतीलाल विजयवर्गीय का आलेख ‘हिंदी वर्तनी विचार’ पत्रिका की विविधता को और भी विस्तार देेते दिखाई देते हैं। राजेश्वरी शांडिल्य का आलेख ‘भोजपुरी लोक साहित्य में नारी चित्रण’ पढ़ने पर उद्वहरणों की अधिकता के कारण बिखराव सा आ गया है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ अन्य अंकों की तरह विविधतापूर्ण सामग्री लिए हुए हैं।
सम्पादकीय में ‘हिंदी के भविष्य के कुछ पक्ष, महिलाओं का उत्पीडन और दूसरे सामाजिक नवजागरण की आवश्यकता, लोहिया की जन्मशती एवं खानखोजे: एक भूले-बिसरे क्रांतिकारी’ विचारोत्तेजक विषय प्रस्तुत किया गया है।
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