
मूलतः ग़ज़ल एवं गीत प्रधान यह लघु पत्रिका उ.प्र. के कासिमपुर से प्रकाशित होती है। समीक्षित अंक में ग़ज़लें शीर्षक के अंतर्गत सूर्यभानु गुप्त, रमेश सिद्धार्थ, विकास, पूनम कौसर, राजेश असीर, रमेश नीलकमल, गोंविद कुमार सिंह एवं केशव शरण की ग़ज़लें विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। इन्हें नई ग़ज़ल की संज्ञा दी जा सकती है। दोहे खण्ड़ में अनमोल शुक्ल, प्रदीप दुबे तथा दादा कानपुरी इस विधा के साथ न्याय कर पाए हैं। वेकल उत्साही, निर्मल शुक्ल, महाश्वेता चतुर्वेदी तथा श्रीकांत प्रसाद सिंह के गीत कुछ अच्छे लगे। हाइकू विधा की रचनाएं उतनी अधिक प्रभावित नहीं कर पाती हैं। रूबाईयां तथा मुक्त छंद आजकल की अप्रभावशाली विधाएं हैं जिनपर रचनाकारों तथा आलोचकों का ध्यान कम ही जाता है। लघु कलेवर की इस पत्रिका का प्रयास सराहनीय है साथ ही अल्प साधनों में प्रकाशन की प्रशंसा की जानी चाहिए।
Bahut sundar prayas.
जवाब देंहटाएंप्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
जवाब देंहटाएं-----------------------------------
'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
badhiya hindi ke prachaar prasaar ke uddeshy se apka sarahaniy prayaas hai . badhai .
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें