
नारी चेतना के लिए समर्पित पत्रिका नारी अस्मिता के इस अंक में नौ आलेख सम्मलित किए गए हैं। जिनमें भारतीय संस्कृति और दीपावली(आशीष दलाल), आजादी के आंदोलन में सक्रिय रही नारी(आकांक्षा यादव), अर्धनग्न पहनावों के गलियारों में भोगवाद के खुलते दरवाजे(प्रो. विमला जैन ‘विमल’) प्रमुख हैं। काश!हम भी बेटा होकर जन्म लेते(श्रीमती संतोष यादव) ने नारी मन की पीड़ा को बहुत ही आहत होकर लिखा है। कहानियों में लाल धागा(डाॅ. रानू मुखर्जी) तथा न्याय मंड़ी(सावित्री रांका) बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पायी है। इनका लेखन आज के वर्तमान नारी लेखन की अपेक्षा कमजोर है। कविताओं मंे शबनम शुक्ला तथा जयराम आनंद की रचनाएं प्रभावित करती है। राजेन्द्र प्रसाद तथा ज्योति जैन की लघुकथाएं अच्छी बन पड़ी हैं। पत्रिका का मूल स्वर आक्रमक है, इसे बजाय आक्रमकता के सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए अपने लेखों का स्तर परिवर्तित करना चाहिए। पत्रिका का कलेवर तथा साज-सज्जा आकर्षित करती है।
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