
समावर्तन के समीक्षित अंक में विविधतापूर्ण साहित्यिक सामग्री संग्रहित है। श्री दिनेश ठाकुर पर एकाग्र सामग्री उनके समग्र व्यक्तित्व को अच्छी तरह से प्रस्तुत करती है। उनके रंगकर्म पर वरिष्ठ कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा लिखा गया आलेख श्री दिनेश ठाकुर के बहुआयामी व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है। प्रख्यात कवि अज्ञेय जी के चौथा सप्तक पर अवधेश कुमार की भूमिका इस संग्रह की विभिन्न खूबियों को उजागर करती है। नए कविताओं में प्रताप राव कदम, योगेन्द्र कृष्णा, सुदर्शन प्रियदर्शिनी, प्रेमशंकर शुक्ल, अतुल अजनबी ने अपनी अपनी कविताओं को प्रगतिशील विचारधारा से ओतप्रोत होते हुए भी आधुनिक संस्कारों के ताने बानों से बहुत दूर नहीं रखा है। वक्रोक्ति में सूर्यकांत नागर का व्यंग्य ॔नाक का बाल’ एक अच्छी व्यंग्य रचना है। आया अटरिया पे चोर(कैलाश माण्डलेकर) तथा काके लागू पांय(मुकेश जोशी) व्यंग्य के साथसाथ हास्य से भी कुछ हद तक न्याय कर पाए हैं। श्रीराम दवे का व्यंगालेख ॔चलो बसंत! इस बार ऐसे ही सही....।’ बसंत की आधुनिक व्याख्या है। प्रख्यात कथाकार गोविंद मिश्र जी पर एकाग्र रचनाएं प्रभावशील हैं। सरोज कुमार की ॔वह असमंजस में है’ सहित अखिलेश शुक्ल की लघुकथाएं ॔हिसाब’ तथा ॔इतिश्री’ एवं वाणी दवे की लघुकथा ॔मजबूत कंधे’ संक्षेप में बहुत ही विशिष्ट कथानक को स्पष्ट कर पाने में सक्षम रही हैं। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ भी उपयोगी तथा पठनीय हैं।
बेहतरीन पत्रिकाओं का परिचय पाना सुखद लगता है....
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patrikaon k parichaye k liye shukriya... mai abhi tak aapko kavitaye nahi bhej payi darasal smaye ka abhav ho jata hai aur bhi kai jagah mang hai...mai koshish karugi...!!
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