पत्रिका-कथन, अंक-जनवरी।-मार्च09, स्वरूप-त्रैमासिक, संस्थापक-रमेश उपाध्याय, संपादक-संज्ञा उपाध्याय, मूल्य-25 रू।, वार्षिक-100रू., सम्पर्क-107, साक्षरा अपार्टमेंट्स, ए-3, पश्चिम विहार, नयी दिल्ली110063
30 वर्ष पुरानी पत्रिका ‘कथन’ का यह 61 वां अंक है। पत्रिका में तीन कहानियां क्रमशः द्वारकेश नेमा(पेड़), हरजेंद्र चैधरी(तपिश), रूपलाल बेदिया(अपूज्यपाठ) सम्मलित की गई है। द्वारकेश नेमा ने अपनी कहानी पेड़ में दुर्घटना का तानाबान पेड़ के आसपास बुनकर गहरा संवेदनात्मक अनुभव कराया है। रूपलाल बेदिया की कहानी ‘अपूज्यपाठ’ को पूर्णतः दलित कहानी तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका कथ्य दलित व शोषित वर्ग की आवाज़ को सिद्दत के साथ उठाता हुआ प्रतीत होता है। तपिश भी एक अच्छी कहानी है जो विस्फोटों के साए में जी रहे शहरी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। कविताओं में निर्मला ठाकुर, अच्युतानंद मिश्र, शंकरानंद विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। बद्रीनायायण की कविताएं (विशेष प्रस्तुति) बाजारवाद के दुष्परिणामों के प्रति ध्यान आकर्षित करती हैं। एकांत श्रीवास्तव एवं बिंदु भास्कर की रचनाएं और भी अधिक गहराई के साथ अपनी प्रस्तुती देती तो संबंधित विषय के प्रति अधिक न्यायसंगत होता। प्रभाष जोशी की रचना (मुम्बई के बहाने कुछ सवाल) पत्रिका के इस अंक की सर्वश्रेष्ठ रचना है। वे ताज एवं ओबेराय पर हुए आतंकी हमलों की चेनलों द्वारा प्रस्तुतीकरण पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। इलेक्ट्रांनिक मीडिया ने जिस तरह से फीचर फिल्म की भांति मुम्बई की घटना का प्रसारण किया वह आम जन को खबरी चेनलों से दूर ही करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय चेनलों पर उस घटना के प्रसारण के पश्चात भी दूसरे दिन लोग अखबार पढ़ने के लिए लालायित दिखे। इससे सिद्ध होता है कि आम जनता आज भी इलेक्ट्रानिक मीडिया को दूसरे दर्जे पर ही रखती है। इस बार ज्वारीमल्ल पारख का आलेख ‘भूमंडलीय यथार्थ और हिंदी सिनेमा’ आलेख की अपेक्षा किसी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक के व्याख्यान के समान लगा। ऐसा लगा जैसे श्री पारख ने इसे जल्दी में लिखा हो। सभी समीक्षाएं तथा उत्पल कुमार का लेख ‘टोटल कैपिटलिज्म’ पत्रिका के स्तर के अनुरूप हैं। नव नियुक्त संपादक श्रीमती संज्ञा उपाध्याय के संपादकीय में रमेश उपाध्याय के संपादकीय की झलक मिलती है। पत्रिका स्तरीय संग्रह योग्य तथा पठनीय है।

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