पत्रिका: साहित्य सागर, अंक: जून 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: कमलकांत सक्सेना, पृष्ठ: 52, मूल्य: 20रू (वार्षिक: 240 रू.), ई मेल: , ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 0755.4260116, सम्पर्क: 161बी, शिक्षक कांगे्रस नगर, बाग मुगलिया भोपाल म.प्र.
साहित्स सागर पत्रिका का यह अंक गीतकार कमला सक्सेना पर एकाग्र है। अंक में उनके लेखन व शैली व उपयोगी जानकारी का प्रकाशन किया गया है। उनके रचनकर्म पर संजय सक्सेना, डाॅ. फिरोजा, कैलाश पंत, हुकुमपाल सिंह, राजश्री रावत, सत्यनारायण भटनागर तथा जगदीश किंज्लक ने विस्तार से विचार व्यक्त किए हैं। आलेख हिंदी कविता में ग्रीष्म ऋतु पढ़कर लगता है कि यह कविता की अपेक्षा एक विशिष्ठ विचारधारा का पोषण अधिक करता है। रमेश कुमार शर्मा, उपेन्द्र पाण्डेय तथा हरिवल्लभ श्रीवास्तव को छोड़कर अन्य कवियों की कविताएं महज खानापूर्ति ही अधिक लगती है। सनातन कुमार वाजपेयी की कहानी ‘तिरस्कार का अंागन’ ठीक ठाक है। भवेश दिलशाद की तीर्थ यात्रा रिपोर्ट प्रभावित करती है इसे पत्रिका की उपयोगी व अच्छी जानकारीपरक रचना कहा जा सकता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं साधारण हैं।
साहित्स सागर पत्रिका का यह अंक गीतकार कमला सक्सेना पर एकाग्र है। अंक में उनके लेखन व शैली व उपयोगी जानकारी का प्रकाशन किया गया है। उनके रचनकर्म पर संजय सक्सेना, डाॅ. फिरोजा, कैलाश पंत, हुकुमपाल सिंह, राजश्री रावत, सत्यनारायण भटनागर तथा जगदीश किंज्लक ने विस्तार से विचार व्यक्त किए हैं। आलेख हिंदी कविता में ग्रीष्म ऋतु पढ़कर लगता है कि यह कविता की अपेक्षा एक विशिष्ठ विचारधारा का पोषण अधिक करता है। रमेश कुमार शर्मा, उपेन्द्र पाण्डेय तथा हरिवल्लभ श्रीवास्तव को छोड़कर अन्य कवियों की कविताएं महज खानापूर्ति ही अधिक लगती है। सनातन कुमार वाजपेयी की कहानी ‘तिरस्कार का अंागन’ ठीक ठाक है। भवेश दिलशाद की तीर्थ यात्रा रिपोर्ट प्रभावित करती है इसे पत्रिका की उपयोगी व अच्छी जानकारीपरक रचना कहा जा सकता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं साधारण हैं।
एक टिप्पणी भेजें