पत्रिका: समावर्तन, अंक: जुलाई2010, स्वरूप: मासिक, संपादकः रमेश दवे, पृष्ठ: 64, मूल्य:25रू.(.वार्षिक 250रू.), ई samavartan@yahoo.com मेलः , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोनः 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान उज्जैन म.प्र.
समावर्तन का समीक्षित अंक अपने पूर्ववर्ती अंकों के समान उत्कृष्ट रचनाओं से परिर्पूण है। अंक में ख्यात आलोचक डाॅ. धनंजय वर्मा पर संग्रह योग्य सामग्री का प्रकाशन किया गया है। प्रमुख शैलेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा लिखा गया है। ख्यात वरिष्ठ साहित्यकार रामदरश मिश्र पर एकाग्र इस अंक में उनकी चुनी हुई कविताएं, कहानी सीमा व अन्य सामग्री का प्रकाशन किया गया है। उनका आत्मसंघर्ष व अलका सिन्हा से साक्षात्कार पाठक को कुछ नया करने के लिए प्रेरित करता है। सुनीता जैन व अमिताभ मिश्र की कविताएं आज के समाज पर विचार करती प्रतीत होती है। वक्रोक्ति के अंतर्गत ख्यात कवि विष्णु नागर पर सामग्री पठनीय व सहेज कर रखने योग्य है। उनसे बातचीत में उनके साहित्यिक जीवन की यात्रा के पढ़ावों के संबंध में उपयोगी जानकारी हासिल होती है। डाॅ. सूर्यबाला व बी.एल. आच्छा, हरीश कुमार सिंह, मृदुल कश्यप का व्यंग्य सार्थक व्यंग्य की श्रेणी की रचनाएं हैं। इनमें समाज के लिए कुछ न कुछ नया करने की प्रेरणा है। कार्टूनिस्ट सुधीर दर पर एकाग्र रचनाएं उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से पाठक को परिचित कराती है। पत्रिका की कहानी मरजीवा(इंदिरा दांगी) समाज के संघर्ष व उसके दुख दर्द को अपनी वाणी प्रदान करती है। मोहम्मद आरिफ, राजेन्द्र सिंह साहिल की लघुकथाएं पठनीय बन पड़ी हैं। सतीश मेहता का आत्म कथ्य व ख्यात आलोचक डाॅ. ्रप्रभाकर श्रोत्रिय का उनपर एकाग्र लेख उनके जीवन से नजदीकी से परिचित कराता है। जवाहर चैधरी व सूर्यकांत नागर के लेख व विनय उपाध्याय की उनसे बातचीत पत्रिका की सार्थकता व स्वीकार्यता बढ़ाती है। कमलेश्वर साहू की कविताएं व राग तेलंग का लेख साहित्य से साहित्य को जोड़कर नया करने की प्रेरणा देते हैं। अग्रिम पंक्ति की इस पत्रिका का स्तर हर पाठक वर्ग के लिए संग्रह योग्य व पठनीय है।

3 تعليقات

  1. िस सुंदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद

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  2. अच्छा चल रहा है भाई यह ब्लॉग ।

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