बाज़ारवाद पर आपने पहली पोस्ंिटग में कुछ जानकारी प्राप्त की। दरअसल बाज़ारवाद कोई साहित्यिक प्रवृत्ति न होकर आधुनिक जीवन शैली का एक हिस्सा ही है। जिस तरह से माक्र्सवाद ने पिछली सदी में यूरोप और दुनिया के बहुत से देशों को अपने प्रभाव में लेकर उनके उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया था वही भूमिका बाज़ारवाद 21 वीं सदी में निभा रहा है। अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस सहित दुनिया के तमाम देशों ने समझ लिया है कि हिंदी की उपेक्षा अब अधिक दिनों तक संभव नहीं है। साहित्य के साथ साथ खेलकूद, राजनीति, समाज, शिक्षा, प्रशासन आदि के लिए बाज़ारवाद आधुनिक जीवन शैली तथा विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का जरिया है। अफ्रीका में आई.पी.एल. का सफल आयोजन व उसके प्रसारण के लिए हम भारतीयों का दीवाना होना क्या बाज़ारवाद का विस्तार नहीं है? आज अमरीकी तंत्र से यदि भारतीयों को अलग कर दिया जाए तो आप समझ सकते हैं कि उस देश का क्या होगा।Agra_Hotels
Agra_Hotels

बाज़ारवाद पर आपकी छोटी सी प्रतिक्रिया का इंतजार है।(शेष अगली पोस्ट में)

1 تعليقات

  1. सुन्दर प्रस्तुति। देवी नागरानी जी कहतीं हैं कि-

    बाजार बन गए हैं चाहत वफा मुहब्बत।
    रिशते तमाम आखिर सिक्कों में ढ़ल रहे हैं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    ردحذف

إرسال تعليق

أحدث أقدم