पत्रिका-प्रगतिशील वसुधा, अंक-समकालीन कहानी विशेषांक.1, स्वरूप-त्रैमासिक, प्र. संपादक-प्रो. कमला प्रसाद, अतिथि संपादक-जयनंदन, पृष्ठ-368, मूल्य-75रू.(वार्षिक 250रू.), संपर्क-एम.31, निराला नगर, दुष्यंत मार्ग, भदभदा रोड़, भोपाल 461.003(भारत)
लब्धप्रतिष्ठित व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा स्थापित पत्रिका का समीक्षित अंक ‘समकालीन कहानी विशेषांक-01’ है। अंक में नए किंतु प्रतिभावान कथाकारों को स्थान दिया गया है। अतिथि संपादक जयनंदन के अनुसार, ‘यह संतोष का विषय है कि हिंदी की सभी विधाओं में बड़ी संख्या मंे नई पीढ़ी सृजनरत है।’ हिंदी साहित्य का लेखक अंग्रेजी के लेखकों के समान धन-वैभव नहीं प्राप्त कर पाता है। इसकी वजह कोई और नहीं हम हिंदी के जानकार ही हैं। नवलेखकों रचनाकारों से अत्यधिक अपेक्षा रखना भी इसका एक प्रमुख कारण है। एक दम नया कथाकार उदयप्रकाश, स्वयंप्रकाश या ज्ञानरंजन तो हो नहीं समता फिर आखिर क्यों हम उसकी प्रारंभिक रचनाओं की तुलना करने लगते हैं? उसकी प्रतिभा के अनुरूप उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। जो आज हिंदी साहित्य को अंग्रेजी और इतर यूरोपिय भाषाओं के साहित्य के बराबरी में खड़ा करने के लिए आवश्यक है। दूसरी प्रमुख वजह हिंदी साहित्य में गुटवाद, वर्गवाद तथा अपनावाद है। इस विवाद में पड़कर न जाने कितने कथाकारों ने साहित्य से मुख मोड़ लिया है। वसुधा के समीक्षित अंक ने नए रचनाकारों का स्वयं मूल्यांकन न कर उन्हें प्रकाशित करने का साहसिक कार्य किया है। उसमें भी उल्लेखनीय यह है कि वसुधा ने पाठकों पर यह दायित्व छोड़ दिया है कि वे इन रचनाकारों में भविष्य के लिए संभावनाएं तलाशें। अंक में रहगुजर की पोटली(अल्पना मिश्र), चोर-पंचर(कमल), बादलों को घिरते देखा है(स्नोवा बार्नो), हेलिकाप्टर(संजय कुंदन) तथा यस सर(अजय नावरिया) वर्तमाना संदर्भो से कथानक उठाकर लिखी गई अच्छी कहानियां है। इनके पात्र 21वीं शताब्दी में जी रहे भारतीय जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्फ पिघलेगी(अख्तर आजाद), मोक्ष(मनीष द्विवेदी), शहर की खुदाई में क्या कुछ मिलेगा(चंदन पाण्डेय) तथा खरपतवार(मनीषा कुलश्रेष्ठ) कहानियां भारतीय पाश्चात्य संस्कृति के भेद को मिटाती हुई दिखाई देती हैं। पत्रिका में वैचारिकी स्तंभ के अतर्गत कृष्ण मोहन, खगेन्द्र ठाकुर, बलराज पाण्डेय, विश्वनाथ त्रिपाठी, महेश कटारे, वंदना राग, विनोद तिवारी तथा विजय शर्मा समकालीन कहानी का गंभीरतापूर्वक विश्लेषण करते हैं। इन लेखकों की वैचारिकी में गंभीर विश्लेषण ही नहीं भविष्य के कथाकारों-लेखकों के सृजन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत भी हैं। प्रगतिशील वसुधा का समीक्षित अंक संग्रह योग्य है। इसके संदर्भो की हर साहित्यकार को आवश्यकता होगी। उत्कृष्ट अंक के लिए बधाई।
आप बहुत ही सुंदर जानकारिया देते है हमेशा.
ردحذفबहुत बहुत धन्यवाद
aapne bilkul sahi baat likhi hai.
ردحذفहिन्दी साहित्य .....प्रयोग की दृष्टि से
Sundar Patrika...sundar aur sargarbhit Samiksha !!
ردحذفसरल सार्थक् व स्वस्थ सामग्री
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