कथादेश, अंक-मार्च.09, स्वरूप-मासिक, संपादक-हरिनारायण जी, पृष्ठ-98, मूल्य-20रू.,(वार्षिक200रू), संपर्क-सी.52/जेड़.3, दिलशाद गार्डन, दिल्ली 110.095 (भारत)
कथादेश के समीक्षित अंक में पांच कहानियां शामिल की गई हैं। इनमें देश की बात(हृदेश), लल्लू लाल कौ रूपैया(विभांशु दिव्याल), शतरंज(मुरलीधर), आतंक(विजय शर्मा) तथा सुर न सधे(लवलीन) प्रमुख हंै। हृदयेश की कहानी देश की बात भारतीय ग्रामीण जीवन व उसकी विषमताओं पर विचार करती है। विभांशु दिव्याल ने बहुत ही रोचक शैली में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर विचार किया है। वे कहानी में यह समझाने में पूर्णतः सफल रहे हैं कि आखिर उस ‘एक रूपैया’ के कितने हिस्से होंगे? वह रूपया जो पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के लिए हैै किस तरह से ऊपर से नीचे तक प्रवाहित होता रहता है। मुरलीधर की कहानी शतरंज तथा विजय शर्मा की कहानी आतंक भी कथ्य एवं शिल्प में अद्वितीय है। पुरूषोत्तम अग्रवाल का आलेख (रामानंद आख्यान के बारे में) तथा शीला इन्द्र का संस्मरण (ऐसी भी एक मां थी) बिलकुल नई विषय वस्तु प्रस्तुत करने में कामयाब रहे हैं। विश्वनाथ त्रिपाठी तथा वरिष्ठ कवि लीलाधर मण्डलोई ने ख्यात कवि सुदीप बनर्जी के व्यक्तित्व की विशेषताओं पर सुदंर ढंग से प्रकाश डाला है। पत्रिका की सबसे अधिक उपयुक्त रचना गुजराती दलित लेखनः अंतरंग पड़ताल है। आलेख में बजरंग बिहारी तिवारी दलित लेखन के विभिन्न दौर के माध्यम से दलित व्यथा का चित्रण करने में सफल रहे हैं। हषीकेश सुलभ मनोज कुलकर्णी तथा रवीन्द्र त्रिपाठी ने अपने अपने आलेखों में विषय वस्तु का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया है। कविताओं में सुचेता मिश्र, प्रज्ञा रावत तथा एस.एम. मेहदी की कविताएं उल्लखनीय हैं। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ, समीक्षाएं, साहित्यिक समाचार इस अंक को विशिष्ट बनाने में कामयाब रहे हैं। कथादेश के तेरहवें वर्ष में प्रवेश करने पर हार्दिक बधाई

2 تعليقات

  1. अखिलेश जी,
    आज प्रथमतः आपके चिट्ठा पर पहुँचा हूँ.
    कथा देश की समीक्षा पढ़ कर उसमें समाहित साहित्य के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हुई,
    साथ ही कहानियों पर दिए गए टीप से उन्हें पढने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई .
    सद प्रयास के लिए मेरी बधाई स्वीकारें.
    आपका
    - विजय

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  2. mast hai bhai, kya baat hai..aap se sampark mein rahunga, aap se kuch madad bhi chahta hun ek mail likha hai , jawab ki umeed rakhunga

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