पत्रिका-साक्षात्कार, अंक-नवम्बर.08, स्वरूप-मासिक, सलाहकार-मनोज श्रीवास्तव एवं पवन श्रीवास्तव, प्रधान संपादक-देवेन्द्र दीपक, संपादक-हरिभटनागर, मूल्य-15रू.वार्षिक-150रू. संपर्क-साहित्य अकादेमी, म.प्र. संस्कृति परिषद, संस्कृति भवन, वाण गंगा भोपाल-3 (भारत)
साफ सुथरी सादगीपूर्ण साज-सज्जा से युक्त साक्षात्कार का नवम्बर 08 अंक विविधतापूर्ण साहित्यिक रचनाओं से परिपूर्ण है। इस अंक में ओम भारती, कुमार सुरेश एवं ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं शामिल की गई हैं। एक ओर जहां ओम भारती की कविताएं ‘शाम’, ‘किसी सड़क पर’, ‘कहां है वह बीज’ प्रगतिशीलता का उद्घोष करती हैं वहीं दूसरी ओर कुमार सुरेश की लम्बी कविता ‘समयातीत पूर्ण’ तथा ‘इस मुश्किल का अहसास भी’(ब्रज श्रीवास्तव) बाज़ारवाद से बचते हुए हमारी विरासत को बचाने के लिए आग्रह करती दिखाई देती है। मोहन सगोरिया की सभी कविताओं में से ‘ध्वंस के आसपास ही’ कविता आम आदमी को तमाम समस्याओं के रहते हुए भी जीवन जीने का संदेश देती है। गीत ग़ज़लांे में श्याम सुंदर दुबे, जगदीश श्रीवास्तव, के गीत नवगीत से भी आगे अभिनव गीत की ओर ले जाते हैं। श्याम लाल शमी तथा मधु शुक्ला के गीतों का स्वर आज की आपाधापी युक्त जिंदगी में पेड़ की घनी छाया तले बैठ कर कुछ देर सुस्ताने का अहसास कराता है। से. रा. यात्री एवं ए. असफल की कहानियों में नएपन का अहसास होता है। विशेष रूप से ए. असफल ब्लैक होल’ कहानी में प्रगतिशीलता के रूटीन से हटकर कुछ नया सृजित करते हुए दिखाई देते हैं। शोभना वाजपेयी मारू की कहानी ‘बाई साहब’ में कथाकार ने शासकीय मशीनरी में खटते घुटते हुए आम आदमी की समस्यों की तरफ संकेत किया है। हमेशा की तरह अमृतलाल वेगड़ नर्मदा के जल से सुधी पाठकों की प्यास बुझाते लगते हैं। सीतेश आलोक के उपन्यास अंश से ‘ विषय वस्तु पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो सकी है। पत्रिका का समीक्षा खण्ड एवं पाठक मंच हमेशा की तरह उपयोगी पठ्नीय सामग्री संजोए हुए हैं।

1 تعليقات

  1. आपका यह प्रयास सराहनीय है.

    स्तरीय सामग्री से परिपूर्ण साक्षात्कार की मात्र 1500 प्रतियाँ निकलती हैं. जिससे इसकी पहुँच अत्यंत सीमित होती है. कल्पना कीजिए कि यह पत्रिका नेट पर भी होती तो कितना अच्छा होता.

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