पत्रिका-साहित्य सागर, अंक-फरवरी.09,स्वरूप-मासिक, संपादक-कमलकांत सक्सेना, पृष्ठ-54, मूल्य-20रू., संपर्क-161, बी, शिक्षक कांग्रेस नगर, बाग मुगलिया, भोपाल म.प्र. (भारत)
साहित्य सागर का समीक्षित अंक ग़ज़ल अंक है। इस अंक को श्री सतीश चतुर्वेदी पर एकाग्र किया गया है। ग़ज़ल विधा और इसकी खूबियों पर आलेख प्रमुख रूप से भवेश दिलशाद, डाॅ. महेन्द्र अग्रवाल, डाॅ. बी. जे. गौतम, कमर बरतर द्वारा लिखे गए हैं। इनमें महेन्द्र अग्रवाल का आलेख ‘नई ग़ज़लः लिपि और लहजे का प्रश्न’ आज लिखी जाने वाली तरक्की पसंद ग़ज़लों पर एक अच्छा मुरासला है। महेन्द्र ने बहुत ही अच्छे तरीके से उर्दू लिपि और हिंदी साहित्य में ग़़ज़ल के महत्व को रेखांकित किया है। ‘ग़ज़लायन’ के अंतर्गत कुछ बहुत ही खुबसूरत ग़ज़लें शामिल की गई हैं जिनमें रमेश सोबती, अशोक गीते, देवप्रकाश खन्ना, माणिक वर्मा, चन्द्रसेन विराट, नरेन्द्र दीपक, सतीश श्रोत्रिय एवं विनोद तिवारी प्रभावित करते हैं। इन ग़ज़लों में रदीफ और काफिया का बहुत ही करीने से ख्याल रखा गया है। समीक्षित ग़ज़लें सिर्फ ग़ज़ल के हरफी माइने न होकर समय के सच का इज़हार है। श्री सतीश चतुर्वेदी पर एकाग्र खण्ड़ में सुरेश नीरव, डाॅ. राधावल्लभ आचार्य, डाॅ. प्रेमलता नीलम एवं सरोज ललवानी के आलेख बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ भी स्तरीय व पठनीय है। निरंतर सात वर्ष से साहित्य के सागर से नायाब मोती ढूढने का यह प्रयास सराहनीय है। इसके लिए संपादक बधाई के पात्र हैं।

4 تعليقات

  1. Wah Akhilesh bhai
    ye nayi partika ki jaankari bahut achhi lagi

    shukriya

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  2. आपके द्वारा अच्छी जानकारी दी जा रही है!

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  3. mujhe ye patrika chahiye kaise prapt ho ?


    arsh

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  4. अच्‍छी जानकारी उपलब्‍ध करायी...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

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