garbhnal patrika
पत्रिका: वेब पत्रिका गर्भनाल, अंक: जुलाई 2021, स्वरूप: मासिक, संपादक: सुषमा शर्मा, संपादकीय सलाहकार: कविता विकास, आवरण/रेखाचित्र: जानकारी उपलब्ध नहीं, पृष्ठ: 70, मूल्य: नेट पर उपलब्ध, वार्षिक मूल्य: जानकारी उपलब्ध नहीं, ई मेल: garbhanal@ymail.com , फोन/मोबाइल: Not avilable, सम्पर्क: डीएक्सई 23, मीनाल रेसीडेंसी, जे.के. रोड़, भोपाल 462023 म.प्र.,  बेवसाइट: https://www.garbhanal.com 

पत्रिका की PDF File download करने के लिये यहां क्लिक करें । यह अंतराष्ट्रीय पत्रिका इंटरनेट पर उपलब्ध है। 

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गर्भनाल पत्रिका का यह इंटरनेट अंक है। यह नेट की प्रमुख पत्रिका है। जिसे मध्यप्रदेश के भोपाल शहर से प्रकाशित किया गया है। अंक की रचनाओं का विवरण निम्नानुसार है -

संपादकीय - संकल्प का समय

        संपादकीय में संकल्प के समय को स्पष्ट किया गया है। व्यक्ति जो चाहता है वह प्रायः होता नहीं है। जिसे होना नहीं चाहिये वह होे जाता है। कोई डाॅक्टर बनना चाहता है, लेकिन व्याख्याता बन जाता है। संकल्प लें, उदेद्श्य की प्राप्ति के लिये यह आवश्यक है तथा समयानुकूल भी है। साहस, संकल्प के साथ इतिहास का घटनाचक्र घूमा है। 

        श्रीमती कविता विकास ने लक्ष्य प्राप्ति के लिये एकाग्रता तथा विकास को ही आधार माना है। यह अटल सत्य है। जीवन में संकल्प की सार्थकता पर विचार करता संपादकयी प्रभावित करता है। 

विमर्श 

        इस भाग में हिंदी एवं भाषा के संबंध में विभिन्न लेख है। इनकी संख्या 3 है। यह हैं चाहने वालों का इंतजार करती भाषा (डाॅ. प्रमोद कुमार तिवारी), भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा (सचीन वापट) एवं वैश्विक हिंदी और भारत की सांस्कृतिक राजनीति (डाॅ. हाइंस वर्नर वेसलर)। 

        प्रत्येक रचना में भाषा एवं उसके महत्व के साथ साथ ही आज के समय में उपयोगिता पर विमर्श है। भारतीय भाषाओं के भविष्य को लेकर विद्धानों ने विचार व्यक्त किये हैं। गंभीर पाठकों को गर्भनाल का यह भाग अवश्य पसंद आयेगा।  

कहानियां 

        पत्रिका में दो कहानियां प्रकाशित की गई है। जिनमें चरवाहे तथा सब्र का फल है। आइये संक्षेप में जानते हैं इनकी विषय वस्तु के बारे में -

        श्री हरजेन्द्र चोधरी की कहानी चरवाहे लाॅकडाउन के बाद की कहानी है। जिसमें Online कक्षाये हैं। जिसमें अध्ययनरत पीढी है। कहांनी जंगीराम के गांव से शुरू होती है। यह पाकिस्तान की बार्डर के पास बसा है। यह गांव परंपरागत ग्राम है। विकास की बाट जोहता यह गांव कहानी का आधार बनता है। 

        गांव में  अन्य लोगों के साथ चरवाहे भी रहते हैं। मुख्य धारा से कटे रहकर भी यह गांव में मुख्य भूमिका में है। उसी गांव का संदीप महानगर आकर भी गांव को नहीं भूलता है। कहानी में गति के साथ सरसता है। कहानी पठनीय एवं विचारणीय हैं।

        कहानी सब्र का फल (राय कूकणा) अलग रसास्वादन कराती है। कहानी आधुनिक परिवेश में बुनी गई है। जिसमें एयरोप्लेन की मिडिल सीट माध्यम बनती है। यह किसे मिलेगी? कौन बैठेगा? क्यों मिलेगी जैसे प्रश्नों से कहानी गुजरती है। 

        कहानी में English संवाद का उपयोग किया गया है। हो सकता है यह विशुद्ध हिंदी भाषी पाठक के अनुकूल ना हो? लेकिन इनके बिना कहानी आगे कैस बढ़ती? यह सोचने का विषय है। 

        कहानी के पात्र सुधीर एवं अलका सब्र के फल से आनंदित होते हैं। सही भी है, यदि सब्र रखा जाये तो परिस्थितियां अनुकूल की जा सकती है। 

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कविताएं

        पत्रिका में श्री कुमार पवन की कविताएं प्रकाशित की गई है। यह है जंगल, एक दिन तथा धूप की मौजूदगी में तीनों  कविताएं हमारे आसपास के परिवेश की विशेषताएं बताती है। कवि के अनुसार उदास जंगल के हरा भरा होने के लिये हमे मिलकर प्रयास करना होगें। 

        वहीं एक दिन कविता व्यतीत हो रहे समय की ओर इशारा करती है। उसके पश्चात की स्थितियों पर हमें विचार करना होगा। तीसरी कविता पाठक को धूप की मौजूदगी का अहसास कराती है। 

        श्री राजेन्द्र शर्मा की गद्य कविता प्रेम तंतु कविता एवं गद्य का मिलाजुला रूप हैं बल्कि यों कहें कि यह एक नया प्रयोग है। यह कविता आम आदमी को मुश्किलों से निकालने का प्रयास करती है। कविता का स्वरूप एवं विस्तार प्रभावित करता है। 

संदर्भ 

        इसके अंतर्गत श्री विनय उपाध्याय की रचना पुष्प की अभिलाषा है। यह श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता के मूल भाव को स्पष्ट करती है। अब भी पुष्प की अभिलाषा वही है जो बरसों पहले थी। उसमे किचिंतमात्र भी परिवर्तन नहीं हुआ है। फिर भले ही लोग अपने अपने अर्थ ही क्यों ना लगाने  लगें? रचना प्रभावित करती है।

ग़ज़लें 

इस  अंक में श्री अरूण शर्मा की दो ग़ज़लें महंगाई तथा मेरी मुश्किल है। दोनों ग़ज़लें वर्तमान अव्यवस्था तथा आम आदमी की मुश्किलों का हल खोजने का प्रयास करती दिखाई पड़ती है। 

मन की बात

        इस भाग में श्रीमती स्वाति नाटेकर का लेख मेरी संगीत सरिता है। लेखिका ने अपने 45 वर्ष के संगीत जीवन को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। संगीत के संस्कार स्वाति जी में बचपन से ही थे। परिवार ने भी उन्हें सहयोग दिया जिससे वे अपना मुकाम हासिल कर सकीं। यह संस्मरण श्रीमती स्वाति नाटेकर के जीवन से सीखने का अवसर प्रदान करता है। 

यायावरी 

        श्रीमती पूजा भाटिया ने संधान वेली या Valley of shadow एक यात्रा संस्मरण है। मैं इसे यात्रा वृतांत नहीं कह रहा हूं। उसका कारण है कि लेखिका स्वयं प्रत्येक स्थल पर उपस्थित है। वे प्रकृति का बारीकी से अवलोकन करती है। पूजा जी ने यात्रा का वर्णन ना कर इसे पाठक स्मृतियों में संजोने का प्रयास किया है। यही उनकी सफलता है। यही उनका मंतव्य भी  है। शानदार लेखन के लिये बधाई। पठनीय रचना है। 

तथ्य 

        वेनिस के सौदागर रचना डाॅ. वरूण कुमार का आलेख है। लेख में उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात यहूदियों पर होने वाले अत्याचार पर अपना चिंतन प्रस्तुत किया है। इसे वे प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर के मशहूर नाटक वेनिस का सौदागर से जोड़ते हैं। 

        लेखक ने अनेक अनुकूल परिस्थियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इसमें वे सफल भी रहे हैं। इस विषय पर अनेक लेख लिखे गये हैं। लेकिन डाॅ. वरूण कुमार इसे आज के संदर्भ में देखते हैं। यही लेख की विशिष्टता भी है। शानदार

बतकही 

    इस भाग में श्री हरिहर झा का लेख रूबी है। उन्होंने अपने Australia प्रवास के दौरान रूबी से मुलाकात का वर्णन किया है। रूबी एवं पीटर के बीच एक दरकती दीवार को श्री झा देखते हैं। लेकिन वह बिखरती नहीं है और ना ही टूटती है। वह परिवार भारतीय संस्कारों एवं रीतिरिवाजांें को जानता है। 

        यह संस्कार विदेशों में भी देखने को मिलते हैं। इसके संबंध में लिखने की अपेक्षा पढ़ने में अधिक आनंद आयेगा। अच्छी रचना है। 

शोध आलेख

इस भाग में कुल 8 आलेख प्रकाशित किये गये हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है -

दलित महिलाओं की शिक्षा के माध्यम                      हू रूई

अस्तित्व को तलाशती सिनेमाई स्त्री                         डाॅ. रश्मि शर्मा

बाल साहित्य की मौखिक परंपरा                            डाॅ. विभा ठाकुर

गोदान में कृषक जीवन                                          डाॅ. कुसुम नेहरा

सिनेमा और समाज                                               डाॅ. मंजु रानी

दलित साहित्य और स़्त्री चित्रण                              डाॅ. स्वाति श्वेता

भय और मृत्यु का परिपे्रक्ष्य                                  डाॅ. हर्षबाला शर्मा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और हिंदी साहित्य            डाॅ. हेमवती शर्मा

सभी लेख शोधपरक हैं, लेकिन इनमें सरसता है। पाठक पढ़कर उबता नहीं है बल्कि कुछ ना कुछ प्राप्त करता है। 

        पत्रिका का कलेवर, अन्य रचनाएं एवं साज सज्जा प्रभावित करती है। अच्छा अंक  हैं आप इस पत्रिका का PDF कथा चक्र से डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं। 

विशेष : पत्रिका गर्भनाल की सामग्री, चित्र, नाम तथा अन्य विवरण का उपयोग केवल समीक्षा हेतु किया गया है। समस्त जानकारी गर्भनाल पत्रिका से साभार। 

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अखिलेश शुक्ल

समीक्षक, ब्लागर, संपादक 
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