पत्रिका-व्यंग्य यात्रा-जन.-जून.09, स्वरूप-त्रैमासिक, संपादक-प्रेम जनमेजय, पृष्ठ-136, मूल्य-रू.20(वार्षिक 80रू.), संपर्क-73, साक्षर अपार्टमेंटस, ए-3, पश्चिम विहार, नई दिल्ली 110063(भारत)
व्यंग्य साहित्य की सार्थक त्रैमासिकी का समीक्षित अंक संयुक्तांक है। अंक में व्यंग्य गद्य व पद्य की कुछ समसामयिक रचनाएं इस आशय के साथ प्रकाशित की गई है कि यह समाज को दिशा देने का प्रयास करने के साथ साथ जन साहित्य को आम लोगों तक पहंुचाएगी। अंक में कुछ कालजयी रचनाएं जैसे शरद जोशी की सरकार का जादू, रवीन्द्र नाथ त्यागी की तीन मिनी कथाएं हर समय काल तथा हाल में पसंद की जाएंगी। ज्ञान चतुर्वेदी के उपन्यास अंश ‘मर गए बब्बा’ पढ़कर इस उपन्यास को पढ़ने के लिए पाठ्क अवश्य ही बेताब रहेगा। जितनी चुटीली कटीली तथा असरकारक भाषा का प्रयोग ज्ञान जी ने किया है वह पाठक को अंक तक बांधे रखती है। अन्य रचनाओं में संपादक व्यंग्यकार पे्रम जनमेजय का व्यंग्य नाटक तथा सी भास्कर राव, के.पी. सक्सेना दूसरे, रामकुमार कृषक, रमेश सेनी, शम्भुनाथ सिंह, यश गोयल, राजेन्द्र उपाध्याय, अशोक गौतम, अनुराग वाजपेयी तथा योगेन्द्र दवे की रचनाएं अधिक प्रभावशाली हैं। व्यंग्य कविताओं में रामदरश मिश्र, शशि सहगल, दिविक रमेश, यज्ञ शर्मा, चांद शेरी तथा अक्षय जैन व्यंग्य की समझ तथा अंर्तवस्तु को प्रगट कर सके हैं। अंक के अन्य स्थायी स्तंभ आलेख तथा सामग्री व स्तरीय व पठ्नीय है। अब यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि डाॅ. प्रेम जनमेजय एक सफल तथा सिद्ध व्यंग्यकार के साथ साथ कुशल संपादक भी हो गए हैं। अंक की अच्छी प्रस्तुति तथा साज सज्जा के लिए बधाई।
व्यंग्य यात्रा का नियमित पाठक होने के नाते आपकी बातों से सहमत हूँ। कुछ ही दिन पूर्व जनमेजय जी से जमशेदपुर में मुलाकात हुई थी और बहुत देर तक बात भी हुई थी। सचमुच वे प्रतिभा के धनी हैं।
ردحذفहो गए हैं
ردحذفसे क्या मतलब
वे तो पहले से ही हैं
सुयोग्य
पाठक, संपादक, लेखक
समीक्षक
व्यंग्यकक
सभी कुछ
एक में अनेक
बिल्कुल नेक।
उक्त समीक्षा पूर्वाग्रहग्रस्त लगती है। उल्लेखित अंक के कई अच्छी रचनाओं के लेखकों का उल्लेख नहीं किया गया है जबकि कई घटिया रचनाओं के रचनाकारों का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है। यह अच्छी बात नहीं है।
ردحذفनारदमुनि
भोपाल
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