पत्रिका: समावर्तन, अंक: मई2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: रमेश दवे, पृष्ठ: 96, मूल्य: 25रू(वार्षिक 250रू.), मेल: samavartan@yahoo.com ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 0734.2524457, सम्पर्क: माधवी 129, दशहरा मैदान, उज्जैन .प्र.
इस पत्रिका ने अल्प समय में ही साहित्य जगत में अपनी अच्छी पहचान बना ली है। पत्रिका कला, साहित्य व संस्कृति के विभिन्न पहलूओं को साथ लेकर चलती हुई पाठकों की पठन रूचि में परिष्कार करने का अच्छा प्रयास कर रही है। इस कारण से पत्रिका के प्रत्येक अंक में कुछ न कुछ नवीनता होती है। इस अंक में ख्यात साहित्यकार वीरेन्द्र कुमार जैन को लेखन व विचार के केन्द्र में रखा गया है। उनके व्यक्तित्व पर रमेश दवे, ज्योत्सना मिलन, कुबेरनाथ राय, देवराज, चंद्रकांत वाडिवेकर, रामनारायण उपाध्याय ने विस्तार से अपने विचार रखें हैं। वीरेन्द्र जी की कविताएं, साक्षात्कार तथा अन्य रचनाएं भी पत्रिका में आकर्षक रूप में प्रकाशित की गई है। दिनेश अत्रि, राधेलाल बिजघावने, एम.एल. चैरसिया तथा चंद्रसेन विराट की कविताएं ठीक ठाक हैं। पत्रिका का दूसरा खण्ड ख्यात संगीतज्ञ पं. भीमसेन जोशी पर एकाग्र है। जोशी जी की साहित्य साधना के पचास वर्ष पर सुधीर चंद्र अपने विचार रखते हैं। रमेश दवे, विजय शंकर मिश्र, मीनाक्षी जोशी, कुलदीप कुमार, पं. जसराज, विनोद शर्मा, चम्पा श्रीवास्तव के लेख अच्छे व प्रभावशाली हैं। सुरेश शर्मा की लघुकथाएं तथा प्रमोद भार्गव की कहानी ‘परखनली का आदमी’ उल्लेखनीय रचनाएं हैं। निरंजन श्रोत्रिय के द्वारा चयनित कविताएं तथा ध्रव शुक्ल की कविताएं(पिता की कविताएं) अच्छी रचनाएं हैं। सुरश पण्डित, प्रतापराव कदम, राग तेलंग तथा विनय उपाध्याय ने अपने अपने लेखों में साहित्य बनाम स्थानीयता अथवा बाजारीकरण के परिपे्रक्ष्य में अपनी बात रखी है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं आदि भी प्रभावित करती है।

4 टिप्पणियाँ

  1. आप दुवारा दी सभी समीक्षा प्रभावित करती है...

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  2. आपकी समीक्षाएं संतुलित और प्रभावकारी हैं।
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    प्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
    जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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    ’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे
    भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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