पत्रिका: समावर्तन, अंक: जून 2021, स्वरूप: मासिक, संस्थापक: श्री प्रभात कुमार भटटाचार्य, प्रधान संपादक: श्री मुकेश वर्मा,  संपादक: श्रीराम दवे, आवरण/रेखाचित्र: विवेक शर्मा , पृष्ठ:66, मूल्य: 50 रूपये, वार्षिक मूल्य: 1500 रूपयें, ई मेल :  samavartan@yahoo.com,फोन/मोबाइल:0734.2524457,वेबसाइट: www.samavartan.com, सम्पर्क: अक्षय माधवी 129, दशहरा मैदान, उज्जैन 456010, म.प्र. (भारत)

        मित्रों, आज हम पुनः समावर्तन के एक नये अंक की समीक्षा कर रहे हैं। इससे पूर्व भी कथा चक्र पर समावर्तन के कुछ अंकों की समीक्षा की थी। 

साहित्यिक पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ने के लिये कथा चक्र पर विजिट करते रहें। 

एक बार और विशेष रूप से कहना चाहूंगा। मैंने समीक्षा का परंपरागत तरीका छोड़कर नया तरीका अपनाया है। इस तरीके से मैं बहुत अच्छी तरह से अपनी बात रख पा रहा हूं। आपका क्या विचार हैं, अवश्य बतायें। आशा है आपको समीक्षा का यह तरीका पसंद आयेगा?

तो फिर देर किस बात की है। आइये शुरू करते हैं -

प्रतिष्ठित, स्थापित, प्रवासी कथाकार हम सभी के चहेते श्री तेजेन्द्र शर्मा जी पर एकाग्र अंक की समीक्षा। 

सम्मानीय मित्रों, पत्रिका समावर्तन का यह अंक श्री तेजेन्द्र शर्मा जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एकाग्र है। कुछ अन्य रचनाएं भी इस अंक में प्रकाशित की गई है। 

संपादकीय 

श्री रमेश दवे साहित्यकार के साथ ही प्रतिष्ठित शिक्षाविद भी हैं। इसलिये उनके संपादकीय पठनीय होने के साथ ही संग्रह योग्य भी होते हैं। वर्तमान समय में शिक्षा के व्यापारीकरण पर उन्होंने सच लिखा है। एक ऐसा सच जिसे सभी जानते हैं, मानते हैं, लेकिन स्वीकार नहीं करना चाहते। यह आज की शिक्षा व्यवस्था की विडंबना है। 

प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक श्री मुकेश वर्मा ने अनतिम के अंतर्गत अपने विचार रखे हैं। उन्होंने हिंदी कहानी के लगातार बदलते स्वरूप की चर्चा की है। विगत 100 वर्षो में कहानी में क्या परिविर्तन आये? कैसे हिंदी कहानी विश्वकथा साहित्य के समकक्ष हुई? लेख में कहानी को लेकर काफी कुछ सार्थक लिखा गया है। यह सुखद तथा पठनीय है।

प्रथम पृष्ठ

पत्रिका के प्रथम प्रष्ठ पर डाॅ. मुरलीधर चांदनीवाला की कविता है। जिसका शीर्षक है, स्वार्थ में डूबे हुये हम सब। ऋग्वेद के सूक्त से प्रारंभ होकर यह कविता आज की सामाजिक यर्थातता दर्शाती है। जिसमें श्री चांदनीवाला स्वयं उपस्थित होकर वर्तमान को अतीत से जोड़ने का प्रयास करते हैं। अच्छी कविता है। कविता की गहराई एवं अर्थ प्रभावित करते हैं। 

अब इस अंक के प्रमुख आकर्षक पर एक नज़र 

दोस्तों हिंदी साहित्य के पाठकों के मध्य श्री तेजेन्द्र शर्मा नया नाम नहीं है। जो लोग हिंदी साहित्य से नहीं जुड़े वे भी उनके नाम से परिचित हैं। 

श्री तेजेन्द्र शर्मा जी पर एकाग्र इस अंक की शुरूआत परिचय से की गई है। परिचय से उनके कथा साहित्य में विशाल योगदान के संबंध में जानकारी मिलती है।  कहानी संग्रह, आलोचना, संपादन तथा अनुवाद। उनके लेखन की विविधता प्रभावित करती है। हिंदी कथा साहित्य में श्री तेजेन्द्र शर्मा का योगदान अतुलनीय है।साहित्य में यह योगदान उनके अथक प्रयासों का फल है। इस वट वृक्ष को उन्होंने बड़े परिश्रम से तैयार किया है। 

आत्मकथ्य 

आत्मकथ्य में श्री शर्मा जी ने अपने बचपन के संघर्ष भरे दिनों को याद किया है। पिताजी के कठिनाई भरे दिन, बिना बिजली वाला घर उन्हें आज भी याद है। इसे याद कर पंजाब के कस्बे तथा गांवों की संस्कृति तथा लोकव्यव्हार का दर्शन कराते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि श्री शर्मा जी ने स्वयं के समग्र विकास में परिवार को महत्व दिया है। इसलिये यह आत्मकथ्य हिंदी के नये पाठकों के लिये प्रेरणादायक है। 

उनका यह कहना कि महान साहित्य किसी राजनीतिक विचारधारा का मोहताज नहीं था। आज परेशानी यह है कि साहित्य कहीं ना कहीं राजनीतिक विचारधारा से जुड़ जाता है अथवा जोड़ दिया जाता है। श्री तेजेन्द्र शर्मा जी का लेखन भी किसी विचारधारा से जुड़ा नहीं हैं यह हम उनकी रचनाएं पढ़कर जान सकते हैं।

 कविताएं 

पत्रिका में प्रकाशित कविताओं में उनका समग्र व्यक्तित्व उभरता है। जिसे सजाने संवारने में उनके परिवार का योगदान रहा है। इस योगदान की चर्चा उन्होंने आत्मकथ्य में भी की है। 

पत्रिका के इस अंक में उनकी चार कविताएं हैं। यह हैं - टेम्स का पानी, क्या पतझड आया है, मेरे पासपोर्ट का रंग तथा पुतला गलतियों का । उनकी कविताएं अपने आप में अलग होते हुये भी कहीं ना कहीं एक दूसरे से जुड़ी दिखाई पड़ती है। जैसे -

रंग आकाश का कैसे जल जाता है, 

पासपोर्ट का रंग कैसे बदल जाता है। 

कविता की यह पंक्तियां आज के संदर्भ में बहुत कुछ कह जाती है। कविता पूरी पढ़कर रसास्वादन करे। आपको श्री तेजेन्द्र शर्मा जी में एक ऐसा कवि दिखाई देगा जो समाज के लिये सोचता है, समझता तथा कुछ करने की चेष्टा में निरंतर लगा रहता है। 

ग़ज़लें

समावर्तन के इस अंक में उनकी तीन ग़ज़लें हैं। रास्तों को क्या हुआ, आदमी की जात बने तथा मेरी मजबूर सी यादों को चिता देते हो। 

कहानी 

समावर्तन के इस अंक में उनकी लिखी कहानी कब्र का मुनाफा प्रकाशित की गई है। 

        "यार नजम एक काम करते हैं, बुक करवा देते हैं दो दो कब्रें। हमें नादिरा या आबिदा को अभी बताने की जरूरत क्या है। जब जरूरत पड़ेगी तब बता देगें।" 

कहानी का केन्द्रीय भाव यही है। दरअसल कहानी की शुरूआत भी यहीं से होती है। उसके पश्चात कहानी विभिन्न पड़ाव को पार करती हुई आगे बढ़ती है। कहीं कोई जिंदा व्यक्ति कब्र बुक करवाता है क्या? यह कहानी परिवार के विभिन्न सदस्यों के परस्पर संघर्ष से शुरू होती है। जहां कहानी में पारिवरिक समस्याएं हैं वहीं समाधान भी है। अच्छी कहानी है। नये नये हिंदी जानने वालों को इसे गंभीरता से पढ़ना होगा। तभी वे उसका आनंद ले पायेगें। 

समग्र व्यक्तित्व पर आलेख

जया आनंद ने उनके समग्र व्यक्तित्व एवं लेखन पर अच्छा लेख लिखा है। शीर्षक है, जीवन के जटिल प्रश्नों के सरल कथाकार तेजेन्द्र शर्मा। जया जी ने सही लिखा है कि जहां उनकी कहानियों ने महिलाओं के प्रति आदर, स्नेह भाव है वहीं स्त्रीयों का जीवन संघर्ष  भी  स्वतः आ जाता है। 

पत्रिका का उन पर एकाग्र दूसरा लेख श्री अजय नावरिया ने लिखा है। यह लेख श्री शर्मा जी के कहानी कौशल पर एकाग्र है। जिसका शीर्षक है, प्रवासी कहानी में आर्थिक संरचनाएं और तेजेन्द्र शर्मा। लेख में कुछ कहानियों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इन कहानियों के माध्यम से श्री तेजेन्द्र शर्मा जी के समग्र कथालेखन की बारीकियों तथा कौशल की चर्चा की गई है। अच्छा लेख है। शोधाथियों के लिये यह लेख संदर्भ की तरह है। 

आलोचकों की निगाह में 

इसके अंतर्गत विभिन्न लेखकों, संपादकों तथा साहित्यकारों के विचार प्रकाशित किये गये हैं। डॉ. धर्मवीर भारती, कृष्णा सोबती, परमानंद श्रीवास्तव, प्रो. नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, असगर वजाहत, पुष्पा भारती, जाकिया जुबेरी जगदम्बा प्रसाद दीक्षित तथा डॉ. प्रेम जनमेजय ने श्री तेजेन्द्र शर्मा केे समग्र व्यक्तित्व पर विचार रखे हैं। 

साक्षात्कार 

पत्रिका के इस अंक में श्री तेजेन्द्र शर्मा के समग्र व्यक्तित्व पर साक्षात्कार प्रकाशित किया गया है। डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया ने यह साक्षात्कार लिया है। कहानी पर विचारधारा के दबाव पर किये गये प्रश्न का समसामयिक तथा सटीक उत्तर है। तेजेन्द्र शर्मा जी ने बिलकुल सही कहा है कि विचारधारा के दबाव में अच्छी साहित्य रचना नहीं की जा सकती है। इसी तथाकथित विचारधारा ने को हांनि पहुंचाई है। आज विश्व की अन्य भाषाओं का साहित्य विचारधारा त्यागकर शीर्ष पर है। हिंदी के साथ आज भी विचारधारा चिपकी हुई है। बल्कि यों कहें कि हिंदी लेखक लिखने के पहले ही विचारधारा चुन लेता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

अब कुछ अन्य रचनाएं

 विचार विश्व 

इस भाग में श्री रमेश दवे का लेख कार्ल मार्क्स: द्धंद्ध दर्शन बनाम शांति दर्शन प्रकाशित किया गया है। लेख कार्ल मार्क्स के समग्र चिंतन पर एकाग्र है।

रेखांकित 

कुंदन सिद्धार्थ की कविताएं रेखांकित के अंतर्गत प्रकाशित की  गई है। 

समकाल कथाकाल

यह भाग समकालीन कहानियों के लिये आरक्षित है। इसमें श्री सुभाष चंद्र कुशवाहा की कहानी नाउम्मीदी के बीच को स्थान दिया गया है। 

निहार गीत की कहानी बूढ़ा में विस्तार अधिक होने के बाद भी अच्छी बन पड़ी है। 

कविताएं 

प्रत्येक पत्रिका की तरह समावर्तन में भी कविताओं के लिये स्थान है। इस भाग में शालिनी मोहन, यामिनी नयन गुप्ता की कविताएं है। 

स्मृति शेष 

यहां श्री अशोक वक्त का लेख है। यह लेख प्रसिद्ध कवि प्रकाश उप्पल की रचनाओं पर लिखा गया है। 

फकीरी में बादशाहत लेख श्री सूर्यकांत नागर ने लिखा है। यह लेख प्रसिद्ध साहित्य साधक बटुक चतुर्वेदी पर है। 

बहस 

इस बार बहस के अंतर्गत बहुत अच्छा एवं समसामयिक विषय चुना गया है। शीर्षक है सोशल मीडिया एवं साहित्य। इसके अंतर्गत श्री मनीष वैद्य, श्री प्रकाश कांत, श्री जीवन सिंह ठाकुर, सुनील चतुर्वेदी, श्री संदीप नाईक, श्री मनीष शर्मा, सुश्री सोनल शर्मा, कु. कविता नागर तथा डॉ. प्रदीप उपाध्याय के विचार रखे गये हैं। 

पत्रिका का यह अंक संग्रह योग्य है। अन्य रचनाएं, पत्र, समीक्षाएं आदि भी प्रभावित करती है। 

समावर्तन पत्रिका का  जून 2021 अंक पढ़ने के लिये यहां क्लिक करें। 


Akhilesh Shukla




 









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