
कर्नाटक हिंदी अकादमी, बेंगलूर द्वारा प्रकाशित यह पत्रिका रचनात्मकता में उत्तर भारत से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिकाओं में से कमतर नहीं है। अंक में प्रकाशित प्रमुख लेखों में वैश्वीकरण, मीडिया और हिंदी(पं. अच्युतानंद मिश्र), लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका(गोपाल प्रसाद मिश्र), हिंदी को समाप्त करने का षडयंत्र(प्रभु जोशी), हिंदी पत्रकारिता :नई चुनौतियां एवं जन अपेक्षाएं(सुरेश उजाला) एवं समकालीन हिंदी कविता और उसके खतरे(ओम कुमारी) में अच्छा विश्लेषण है। डॉ. खुर्शीद आलम की कहानी दस्तक अपना प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रही है। ओम रायजादा, लीला मोदी, राम निवास मानव तथा अखिलेश अंजुम की कविताएं सराहनीय हैं। (मेरे द्वारा लिखी गई यह समीक्षा जन संदेश कानपुर में प्रकाशित हो चुकी है।)
bahut badhiya jaankari !
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