
समीक्षित पत्रिका अहल्या का यह अंक विविधतापूर्ण रचनाओं के कारण संग्रह योग्य है। साहित्य के साथ साथ अन्य विविधत विषयों पर विश्लेषणात्मक आलेख इस पत्रिका की विशेषता है। प्रकाशित रचनाओं में - जनतंत्र का कोढ-भाई भतीजावाद(ओम प्रकाश बजाज), सामाजिक चेतना मंे लेखिकाओं की भूमिका(विभा देवसरे), खो रहा है बचपन(आकांक्षा यादव), प्राण दण्ड़(हितेश कुमार शर्मा), व्यंग्य कैसी हो धांसू आत्मकथा(निश्चल), कहानी पडोसी का फर्ज(नंदलाल भारती) तथा दहलीज(शुक्ला चैधरी) प्रभावित करती हैं। हालांकि उपरोक्त रचनाएं को विशुद्ध साहित्यिक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दक्षिण भारत से इनका प्रकाशन तथा देश भर में स्वीकार्यता ध्यान आकर्षित करती है। के.पी. दुबे, मिथिलेश कुमारी शुक्ल व प्रोमिला भारद्वाज की कविताएं तथा जुगल किशोर, सीताराम गुप्ता, डाॅ. आर.के. मालोत के आलेख भी पाठकों को नवीन जानकारी प्रदान करते हैं।
कहाँ कहाँ से ढूंढकर लाते हो पत्रिकायें । इस बार का कथादेश भी चर्चा मे लो भाई ।
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