
साक्षात्कार भले ही अपने समय के काफी बाद प्रकाशित हो रही हो लेकिन इसकी रचनाओं का स्तर पाठकों को आकर्षित करता है तथा पाठक भी इस पत्रिका का इंतजार करते हैं। समीक्षित अंक में ख्यात तथा प्रतिष्ठित साहित्यकार वल्लभ डोभाल से बलदेव बंशी की बातचीत उनके रचनात्मक योगदान के साथ साथ आम पाठक को सृजन के अनेक रास्ते भी बताती है। रामेश्वर मिश्र पंकज, चन्द्रकांता, शहंशाह आलम, अशोक वाजपेयी तथा हेमंत देवलेकर की कविताएं किसी भी विचारधारा की भल भुलैया में न डालकर पाठक से सीधे ही संवाद स्थापित करती है। क्षमा कौल की डायरी तथा अमृतलाल वेगड़ का यात्रा वर्णन दिल को छू लेने वाली रचना है। देवेन्द्र आर्य, अनिरूद्ध नीरव तथा जया चक्रवर्ती के गीत भी विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। बटुक चतुर्वेदी जी की आंचलिक रचना ‘खूब भरौ है जमकै मेला’ म.प्र. के ग्रामीण अंचलों से होती हुई महानगरों तक अपनी स्पष्टवादिता से बाजारवाद को चुनौति देती है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं तथा पत्र आदि भी संकलन के योग्य हैं। काश यह पत्रिका प्रतिमाह प्रकाशित हो जाए तथा पाठक को समय पर मिलने लगे?
नये साल की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंनया वर्ष हो सबको शुभ!
जवाब देंहटाएंजाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
नया वर्ष हो सबको शुभ!
जवाब देंहटाएंजाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
very good work. keep it up
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