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हिंदी प्रचारिणी सभा कैनेड़ा द्वारा विगत 11 वर्ष से निरंतर प्रकाशित यह पत्रिका हिंदी की किसी भी स्थापित पत्रिका से पाठ्य सामग्री व प्रस्तुतिकरण में कम नहीं है। समीक्षित अंक में विविधतापूर्ण रचनाओं का समावेश किया गया है। महावीर शर्मा, सतपाल ख्याल, रचना श्रीवास्तव, साहिल लखनवी तथा रेणुका भटनागर की कविताएं तथा ग़ज़लंे आम भारतीय की पीड़ा व्यक्त करती हैं। महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश ने छब्बीस नवम्बर 2008 मुम्बई काण्ड पर बहुत ही मार्मिक उदगार व्यक्त किए हैं। पंकज जैन ने अपनी कविता में भारत की मिट्टी को याद किया है। ख्यात साहित्यकार सुभाष नीरव से सुधा ओम ढींगरा की बातचीत लेखन और साहित्य की गहराई तक जाती है। प्रेम जनमेजय के व्यंग्य ‘ज्यों ज्यों बढ़े श्याम रंग’ में वे अपनी पैनी लेखनी के माध्यम से स्पष्ट करते है कि आज उजला होन महत्वपूर्ण नहीं है उजला दिखना महत्वपूर्ण है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई देता है। रूपसिहं चंदेल व ऊषा देव के संस्मरण में अंतरंगता को साहित्य से जोड़कर व्यक्त किया गया है। दिव्या माथुर तथा अखिलेश शुक्ल की कहानियां पाठकों को अवश्य ही पसंद आएंगी। इन्द्रा (धीर) वडेहरा का आलेख तथा गुलशन माथुर व डाॅ. योगेश चैधरी की समीक्षाएं बहुत ही सटीक टिप्पणी हैं। पत्रिका के साहित्यिक समाचार, पाठकों के पत्र व अन्य सूचनाएं यह सिद्ध करती हैं कि हिंदी सही मायने में अंतर्राष्ट्रीय भाषा है जिसे विश्व की प्रथम सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा बनाने की आवश्यकता है। पत्रिका के इस सुंदर अंक के लिए संपादक तथा उनकी टीम बधाई की पात्र है।
धन्यवाद जी
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