पत्रिका: साहित्य परिक्रमा, अंक: जुलाई-सितम्बर 2011, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: मुरारी लाल गुप्त गीतेश, पृष्ठ: 128, मूल्य: 15रू (द्वैवार्षिक 100 रू.), ई मेल: shridhargovind@gmail.com ,वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 09425407471, सम्पर्क: राष्ट्रोस्थान भवन, माधव महाविद्यालय के सामने, नई सड़क, ग्वालियर म.प्र.

प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका साहित्य परिक्रमा का समीक्षित अंक 46 वां अंक है। इसे गुजराती साहित्य विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया गया है। अंक में गुजराती साहित्य की रचनाओं को अच्छे व पठनीय अनुवाद के साथ देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया गया है। अंक का संयोजन व प्रस्तुतिकरण आकर्षित करता है। अंक में भक्ति साहित्य में गुजरात के योगदान पर विशेष सामग्री का प्रकाशन किया गया है। नरसिंह मेहता, गंगासती दयाराम, भ्वन शंकर एवं भवन दुला काम की रचनाएं प्रासंगिक हैं व पत्रिका की उपयोगिता पर विचार स्पष्ट करती है। झवेरचंद मेधानी, जयंत पाठक, झीणाभाई देसाई, उमाशंकर जोशी, राजेन्द्र शाह, मनोज खंडेरिया, माधव रामानुज, चिनु मोदी, निरंजन भगत रावजी पटेल, जगदीश जोशी, राजेन्द्र शुक्ल, पन्ना नायक, महेन्द्र सिंह जडेजा की कविताओं के अनुवाद सटीक व पठनीयता से भरपूर हैं। इनके अनुवाद क्रांति कनाटे तथा पारूल मशर द्वारा किए गए हैं। मीनाक्षी चंदाराणा, पारूल मशर, वंदना शांतुइंदु एवं निर्झरी मेहता ने स्वयं अनुवाद कर कविता की मूल भावना को हिंदी में ज्यों का त्यों प्रस्तुत करने में शतप्रतिशत सफलता हासिल की है। सितांशु यशचंद्र की कविता ‘‘यों मुस्कुराते रहो’’ का मूल भाव पाठक के मन को असीम शांति प्रदान करता है। हसिल बूच, चंद्रकांत बक्षी, माय डियर जयु, इला आरब मेहता, हिमांशी शैलत, अश्विन चंद्रराणा की अच्छी कहानियां चुनकर उनके अनुवाद को सरसता प्रदान करने में संपादक को सफलता हासिल हुई है। सामान्यतः अनुवाद प्रायः दुरूह व भारी भरकम हो जाते हैं लेकिन इस पत्रिका में प्रायः सभी अनुवाद भाषा एवं भाव दोनों स्तर पर पाठकों को बांधे रखने में सफल कहे जा सकते हैं। सुरेश जोशी, गुणवंत शाह व शिरीष पांचाल के अनुवाद को यदि अनुवाद न लिखा जाता यह रचनाएं हिंदी की रचनाएं ही समझ में आती है जिससे इनके अनुवाद के कुशल स्तर का पता चलता है। अन्य लेखों में चिनु मोदी, लव कुमार देसाई, शिवदान गढ़वी, मीनाक्षी एवं अश्विन चंद्रराणा, बलवंत जानी, बंसीधर के लेख विशिष्ठ कहे जा सकते हैं। मनुभाई पंचोली व दिनकर जोशी के उपन्यास अंश के साथ साथ भगवत कुमार शर्मा की आत्मकथा एवं वंदना शांतुइंदु, निर्झरी मेहता की रचनाएं पत्रिका के भारतीय भाषा एंव साहित्य की अनूठी पत्रिका का दर्जा प्रदान करती है। संपादकीय ‘आंख का पानी’ इस अंक के संबधं में पाठकों को रचनाएं पढ़ने से पूर्व ही बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है। अच्छा व सहेजने योग्य अंक प्रकाशित करने के लिए अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास बधाई का पात्र है।

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