पत्रिका: साक्षात्कार, अंक: मार्च 2011(मई में प्रकाशित), स्वरूप: मासिक, संपादक: त्रिभुवननाथ शुक्ल, पृष्ठ: 120, मूल्यः 25रू(वार्षिक 250रू.), मेल: ,वेबसाईटउपलब्ध नहीं, फोन/मोबाईल: 0755.2554782, सम्पर्क: साहित्य अकादमी, .प्र. संस्कृति परिषद, वाण गंगा भोपाल .प्र.
पत्रिका के इस अंक में डाॅ. बलदेव शर्मा से रवि शर्मा की बातचीत प्रमुख आकर्षण है। इसमें साहित्य के मार्फत आम आदमी के जीवन को टटोलने का प्रयास किया गया है। डाॅ. बलदेव वंशी ने माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं आत्मबद्धता को स्पष्ट किया है। ‘सखि वसंत आया’ निबंध में डाॅ.दुर्गेश्वर बसंत के माध्यम से देश के नित बदलते हालातों पर कटाक्ष करते हैं। विनय राजाराम तथा सेवाराम त्रिपाठी ने अपने अपने लेखों में रचनाकारों के आंतरिक पक्ष को लेखन की विषयवस्तु बनाया है। राधेलाल बिजघावने, शिवकुमार पाण्डेय, संतोष गोयल तथा विजय कुमार की कहानियों में ऐसा कुछ नहीं मिला जिसका उल्लेख किया जा सके। क्योंकि इस तरह की वर्णात्मक कहानियां हिंदी साहित्य पटल से ओझल हुए एक अर्सा गुजर गया है। डाॅ. पुरूषोत्तम तथा सुरेन्द्र गोयल को छोड़कर अन्य कविताएं साधारण ही हैं। शिव चैरसिया का आंचलिक गीत प्रभावित करता है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं भी पढ़ी जा सकती है।

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