पत्रिका: पाखी , अंक: मई वर्ष 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: प्रेम भारद्वाज, पृष्ठ: 108, मूल्य: 25, ई मेल: pakhi@pakhi.in , वेबसाईट: www.pakhi.in , फोन/मो. 0120.4070300, सम्पर्क: इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी, बी-107, सेक्टर 63, नोएड़ा उ.प्र.
साहित्य जगत की अग्रणी पत्रिका पाखी का यह अंक सामाजिक साहित्यिक रचनाओं से युक्त है। पत्रिका के इस अंक में प्रकाशित कहानियां वर्तमान समय में आम आदमी के जीवन में मच रही उथल पुथल को व्यक्त करती है। इन कहानियों में प्रमुख रूप से पांव में पहिए वाली लड़की(संतोष दीक्षित), वह चेहरा(रूप सिंह चंदेल) तथा बदलाव(शरद उपाध्याय) का उल्लेख विशेष रूप से किया जा सकता है। गरिमा श्रीवास्तव के उपन्यास अंश तथा अचला शर्मा का प्रसंगवश भी प्रभावित करता है। अजित कुमार, प्रत्यक्षा, नमिता सत्येन तथा विनीता जोशी की कविताएं भी नयापन लिए हुए हैं। स्मृति शेष के अंतर्गत राजेन्द्र लहरिया तथा उमाशंकर चैधरी के लेख अच्छे हैं। मीमांसा स्तंभ की सामग्री विशेष रूप से प्रेेम शशांक व राकेश बिहारी ने अपेक्षा के अनुरूप लेखन किया है। प्रतिभा कुशवाहा का स्तंभ ब्लागनामा अपने नए रूप में प्रभावित करता है। वैसे प्रत्येक अंक में इस स्तंभ की उपयोगिता तथा सार्थकता बढ़ती जा रही है। पंकज शर्मा व अशोक गुजरती की लघुकथाओं में नवीनता के साथ साथ भारतीय परिवेश तथा दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं। अंक की सामग्री साहित्यिक के साथ साथ समाज के लिए दिश निर्देश प्रदान करने वाली है। पत्रिका का स्वरूप राष्ट्रीय से बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर को हो गया है यह पत्रिका के प्रत्येक पाठक केे लिए हर्ष का विषय है।

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