पत्रिका: वागर्थ,अंक: अप्रैल 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: एकांत श्रीवास्तव, कुसुम खेमानी, पृष्ठ: 129, मूल्य: 320रू(वार्षिक 200रू.), मेल: bbparishad@yahoo.co.in , वेबसाईट: http://www.bhartiyabhashaparishad.com/ , फोन/मोबाईल: 033.22879962, सम्पर्क: भारतीय भाषा परिषद, 36ए, शेक्सपियर सरणी, कोलकाता 700017
ख्यात साहित्यिक पत्रिका वागर्थ का अप्रैल 2011 अंक साहित्यिकता से भरपूर है। अंक में प्रदीप सक्सेना, विजय कुमार व सुधीर विद्यार्थी के आलेख प्रकाशित किए गए हैं। विजय कुमार का आलेख ‘क्या कविता का अनुवाद संभव है’ इस विधा के वर्तमान स्वरूप की विस्तृत व्याख्या करता है। प्रकाशित कहानियों में ‘उन विशेषज्ञों को प्रणाम’(विद्यासागर नौटियाल), ‘सफेद फूल’(जाफर मेंहदी जाफरी) तथा ‘रफ़्तार’(हरियश राय) के कथानक तथा विषय वस्तु में नवीनता है। ऋतुराज, दिनेश कुमार शुक्ल तथा प्रेमरंजन अनिमेष की कविताएं प्रकृति तथा समाज को जोड़ती है। ख्यात वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर नवल से नताशा की बातचीत ‘राष्ट्र की अस्मिता और भाषा की निजता खतरे में’ भाषा, राष्ट्र व साहित्य पर नए सिरे से विचार करती है। प्रभात त्रिपाठी की डायरी, कमेन्दु शिशिर का यात्रा निबंध तथा मिथिलेश्वर का संस्मरण पत्रिका के अन्य आकर्षण है। अज्ञेय की कहानी हीलीबोन की बत्तखें’ पर प्रेम शशांक के विचार कथा पर नया दृष्टिकोण है। एकांत श्रीवास्तव का संपादकीय ‘काठ की नाव और सोने की नाव’ (रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता सोनार तरी पर एकाग्र) वर्तमान पूंजीवादी दौर के संकट से आगाह करता है।

2 टिप्पणियाँ

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