पत्रिका : सम्बोधन, अंक : अक्टूबरदिसम्बर 2010, स्वरूप : त्रैमासिक, संपादक : क़मर मेवाड़ी, पृष्ठ : 172, मूल्य : 20 रू.(वार्षिक : 80रू.) ई मेल : qamar.mewari@rediffmail.com , वेबसाईट : उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 09829161342, सम्पर्क : पो. कांकरोली, जिला राजसमंद, राजस्थान 313324
लगातार 44 वर्ष से प्रकाशित हो रही त्रैमासिक पत्रिका संबोधन का प्रत्येक अंक नवीनता लिए हुए होता है। पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं में विविधता के साथ प्रस्तुतिकरण की नवीनता आकर्षित करती है। समीक्षित अंक में प्रकाशित कहानियों में ऋतुचक्र(स्वाति तिवारी), वर्जित सुख(जयश्री राय), पहाड़(इंदिरा दांगी), चकबंदी(हुस्न तबस्सुम निहां) उल्लेखनीय है। प्रायः सभी कहानियों में बाजारवाद की अपेक्षा मानव मूल्यों व आदर्शो को तहरीज दी गई है। कालम विशिष्ट कवि के अंतर्गत दिनेश कुमार शुक्ल की तीन कविताओं में से अजब संसार व लिखना कविता में भाव के साथ एक विचार केन्द्र में निहित है जो इन दोनों कविता की विशेषता है। भगवतीलाल व्यास, मधूसूदन पाण्डेया, टीकम चंद्र बोहरा, एम.डी. कनेरिया ॔स्नेहिल’व अखिलेश शुक्ल की कविताएं सम्मिलित हैं। इन कविताओं का स्वर भी तत्कालीन समाज के प्रति सहानुभूति लिए हुए है। शमोएल अहमद का ऐ दिलए-आवारा, नासिरा शर्मा द्वारा लिखित मिस्त्र की ममी तथा पी.सी. पाण्डे का आलेख प्रिंट मीडिया की सामाजिक जवाबदेही पठनीय होने के साथ साथ सरसता लिए हुए है। कवि कथाकार विष्णुचंद्र शर्मा से सुधीर विद्यार्थी की बातचीत क्रांतिकारी और सोशलिस्ट एक जमीन पर काम करें विचारयोग्य व गंभीर साक्षात्कार है। सुरेश पंडित का लेख पहचान का संकट और हिंसा आज के संदर्भ में सामाजिक बहस की मांग करता है। राम मेश्राम, शेख अब्दुल हमीद की ग़ज़लें तथा सीमा श़फक के ख़त, स्वामी वाजिद कासमी की रचना ॔पर्वत पर जब रहा अपना डेरा, के संदर्भ व तफसीलें पाठक के जेहन में स्थान बना लेंगी। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं व पत्र आदि भी पॄने व विचारने योग्य हैं।

1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत पुरानी पत्रिका है यह सम्बोधन और उतनी ही महत्वपूर्ण । कमर मेवाड़ी जी और सम्बोधन एक दूसरे के पर्याय हैं ।

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