पत्रिका: संबोधन, अंक: अप्रैल-जून10, स्वरूप: त्रैमासिक, संपादक: क़मर मेवाड़ी, अतिथि संपादक: हरे प्रकाश उपाध्याय, पृष्ठ: 170, मूल्य:20रू.(.त्रैवार्षिक 200रू.), ई मेल: , वेबसाईट/ब्लाॅग: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. 02952.223221, सम्पर्क: पो. कांकरोली, जिला राजसमंद, 313324 राजस्थान
विगत 44 वर्ष से निरंतर प्रकाशित साहित्य की ख्यात पत्रिका संबोधन का समीक्षित अंक वरिष्ठ कवि व व्यंग्यकार, पत्रकार विष्णु नागर पर एकाग्र है। पत्रिका ने नागर जी के संपूर्ण कृतित्व को विभिन्न रचनाकारों के आलेख के माध्यम से पाठकों के सामने लाने का सफल प्रयास किया है। इस प्रयास में ख्यात पत्रकार, लेखक व कवि हरे राम उपाध्याय ने बड़ी ही कुशलता से संपादित किया है। इस पत्रिका में रचना सामग्री का प्रस्तुतिकरण व रचनाकारों द्वारा व्यक्त निष्पक्ष विचार अद्योपरांत इसे पढ़ने के लिए विवश करते हैं।
साहित्यकारों, पत्रकारों व लेखकों द्वारा नागर जी के मार्फत वर्तमान साहित्यिक परिवेश पर किए गए विचार-
-हमने चाहा कि उनको युवा आंखों से देखा जाए। इस दायित्व के लिए हमने युवा कवि हरे प्रकाश उपाध्याय से निवेदन किया जिसे उन्होंने सहर्ष मान लिया। (क़मर मेवाड़ी, संपादक संबोधन)
-मेरी नजर में रघुवीर सहाय के बाद नागर एकमात्र ऐसेे कवि हैं जिन्होंने बहुत सारी विधाओं में लिखा और पर्याप्त लिखा। अपनी अलग सिग्नेचर ट्यून में। उनकी जो काव्य भाषा और उसकी भावभंगिमा है, उससे उनको किसी परंपरा में डालकर देखना जटिल है। (हरे प्रकाश उपाध्याय, अतिति संपादक)
-नाम कमाने की इच्छा से कभी कुछ नहीं लिखा। लेकिन लिखो तो थोड़ा नाम भी हो जाता है।टांग खिचाई, गुटबाजी, उपेक्षा से घबराने की जरूरत नहीं अपना काम ईमानदारी से करते रहें। (साक्षात्कार में व्यक्त विचार)
-उनकी कहानियां मुझे एक हंगेरियन कहानीकार इश्वान अर्केन की याद दिलाती है। (अस़गर वजाहत)
-उनके लिए भारत का मतलब भारत के गरीब लोगों से है। भारत के स्मारकों से नहीं। (मधुसूदन आनंद)
-कविता लिखे बिना हमें लगता था कि हमारी मुक्ति नहीं है। कविता के जरिए हम वह सभी कुछ हासिल कर सकते हैं जो हमारे पास नहीं है।(नरेन्द्र गौड़)
-मुझ जैसे अड़पेंच इंसान के साथ निभती भी आ रही है। शायद यही इस विष्णु नागर नामक इंसान की खूबी है। (राजकुमार केसवानी)
-नागर जी कविता में जितने सहज हैं, व्यंग्य में उतने ही तीखे और पत्रकारिता वैसे ही प्रखर गंभीर।(प्रेमचंद गांधी)
-उनकी कहानिया, कविताएं और व्यंग्य पढ़ने के साथ साथ कुछ समय साथ रहकर मैंने उनकी भलमनसाहत को देखा है। (पवन करण)
-अपने काम को निपुणता से करना और कराना दोनांें ही मंे विष्णु जी को महारत हासिल है। (सुरेश नीरव)
-वे रचना चयन के मामले में किसी तरह का समझौता नहीं करते। (अतुल चतुर्वेदी)
-विष्णु नागर/एक संज्ञा नहीं/ विशेषण भी नहीं/एक क्रिया है। (दुर्गा प्रसाद झाला)
-बहरहाल मैं आपकी जगह होऊं तो विष्णु जी की डांट सुनकर भी पुलकित हो जाऊं। (प्रियदर्शन)
-विष्णु नागर हमारे समय के ऐसे कवि हैं जो राजनीतिक मकसद को केन्द्र में रखते हैं। उनकी कविताएं दुनिया की दास्तान बनने के रास्ते पर गमन करती हैं और भाषा मनुष्य को संबोधित है बेहतर जीवन की कामना में डूबी। (लीलाधर मंडलोई)
-वे सार्थक व्यंग्य लेखन में विश्वास रखते हैं। (प्रेम जनमेजय)
-वे कहीं भावुक नहीं होते, हमेशा बौद्धिक उपक्रम से तार्किकता का सहारा लेते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनमें संवेदना का पूरी तरह अभाव है। (कर्मेेेन्दु शिशिर)
-उनके व्यंग्य का अभिप्राय अपने समय और समाज तथा राजनीति की विडंबनाओं पर चोट करना रहा है। (राम निहाल गुंजन)
-उनकी कविता मंे मनुष्य जीवन के वृतांत का सूक्ष्म पर्यवेक्षण देखने को मिलता है। (एकांत श्रीवास्तव)
-वे व्यक्तिगत राग द्वेषों और गुटबंदियों में नहीं फंसते। विचार के स्तर पर जरूर तेवर दिखलाते हैं मगर व्यक्ति के स्तर पर लगातार विनम्र बने रहते हैं। (मदन कश्यप)
-उनकी पुस्तक ‘ईश्वर की कहानियां’ साहित्य को लोकप्रिय बनाती हैं। ऐसी लोकप्रियता जिसमें साहित्य की गंभीरता शामिल है।(विमल कुमार)
-विष्णु नागर की कविता धीरे से कभी कभी तो ‘अंडरटोन’ होकर अपनी बात कहती है। जो कि बातें कम, बातों का सार अधिक होती हैं। (पंकज पराशर)
-उनकी पुस्तक ‘ईश्वर की कहानियां’ पर गिरिराज किराडू के विचार- ईश्वर की हत्या करने के एक सौ चालीस तरीके।
-हर बड़ा और विचारवान कवि एक विशिष्ठ कालबोध रखता है और अपने ढंग से उसे व्यक्त करता है। विष्णु नागर के यहां भी इस तरह की अभिव्यक्ति को होना स्वाभाविक है। (शिरीष कुमार मोर्य)-अपने डिक्शन और संपे्रषणीयता के मामले में वे औरों से अलग हैं। (विशाल श्रीवास्तव)
-उनके यहां टेªजेड़ी भी है और उसे बिलकुल अलग ढंग से देखने का नजरिया भी। (शशिभूषण द्विवेदी)
-उनकी रचनाएं अर्थ के स्तर पर कई विविधताओं को अपने में समेटे हुए हैं। (उमाशंकर चैधरी)
-गहराई में उतरना और अपने लेख को गंभीरता का टच देना विष्णु नागर की पत्रकारिता की जान है। (पंकज चैधरी)
-तालाब में डूबीं छह लड़कियां-एक आत्मालापी पाठ।(अविनाश मिश्र)
-विष्णु नागर जी की कविताएं उन्हें एक सचेत एवं संवदेनशील कवि के रूप में पेश करती हैं। (राजीव कुमार)
पत्रिका संबोधन के कुशल व सार्थक संपादन के लिए कमर मेवाड़ी व अतिथि संपादक हरे प्रकाश उपाध्याय बधाई के पात्र हैं। कथाचक्र परिवार की ओर से विष्णु नागर जी की उपलब्धियांे पर अशेष शुभकामनाएं एवं आभार।

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